गुरु का ज्ञान
यह कहानी हमें सिखाती है कि एक सच्चे गुरु की मदद से ही हम सच या भगवान तक पहुँच सकते हैं।
Story
स्वामी विवेकानंद हमारे देश के एक महान दार्शनिक/फिलॉसफर थे। बचपन से ही उनकी गीता, वेद और उपनिषदों के ज्ञान में बहुत रुचि थी। उन्होंने हिन्दू दर्शन के ज्ञान का पूरे देश में प्रचार किया और उसे विदेशों तक भी पहुँचाया। उनके मन में हमेशा ही सच और भगवान को लेकर कई सवाल उठते रहते थे। उन्होंने भगवान और सच के बारे में बहुत सारी बातें सुनी थी पर वह बिना सबूत के किसी बात पर विश्वास नहीं करते थे।
एक दिन स्वामी विवेकानंद अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के पास आए और उनसे कहा कि वह सच को महसूस करना चाहते हैं।
उनके गुरु बोले, “सच तक पहुँचना इतना आसान नहीं है, तुम्हें इस रास्ते पर धीरज रखते हुए आगे बढ़ना होगा।” उन्होंने विवेकानंद को भगवान का ध्यान करने की सलाह दी।
विवेकानंद गुरु की बात मान कर ध्यान का अभ्यास करने लगे। उन्होंने लगातार कई दिनों तक ध्यान का अभ्यास किया।
एक दिन विवेकानंद, भगवान में ध्यान लगा कर बैठे थे। वह अचानक चिल्ला उठे, “मेरा शरीर कहाँ है!”
वो अपने शरीर को महसूस नहीं कर पा रहे थे और खुद को उससे अलग देख रहे थे। वह खुद को आत्मा की तरह महसूस कर रहे थे।
उनके गुरु ने कहा, “मैंने तुम्हें वो दे दिया जो तुम्हें चाहिए था।”
इस घटना के बाद विवेकानंद यह समझ गए कि सच यही है कि हम इस शरीर से बढ़कर हैं, हम आत्मा हैं। हम भगवान से अलग नहीं हैं बल्कि उनका ही एक रूप हैं। विवेकानंद ने सबको इसी सच तक पहुँचाने की कोशिश की। उन्होंने हमें समझाया कि इंसान भगवान की ही छवि है। अगर हम पूरे मन से ढूँढें तो पाएँगे कि हम भी भगवान जैसे ही महान और अनंत हैं।
विवेकानन्द के जीवन के इस घटना से हमें यह सीख मिलती है कि एक सच्चे गुरु की मदद से ही हम सच या भगवान तक पहुँच सकते हैं।
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स्रोत: भगवद् गीता
न जायते म्रियते वा कदाचि- न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो- न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥
आत्मा का न तो जन्म होता है, न मृत्यु। यह कभी उत्पन्न नहीं हुई और न भविष्य में उत्पन्न होगी। यह अजन्मा, शाश्वत, अजर, अमर और प्राचीन है। शरीर नष्ट होता है पर आत्मा नष्ट नहीं होती।
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Story type: Motivational, Spiritual
Age: 7+years; Class: 3+