मैत्रेयी
यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान से बढ़कर और कुछ नहीं क्योंकि सच्चे ज्ञान से ही हम भगवान को पा सकते है।
Story
बहुत पुराने समय की बात है याज्ञवल्क्य नाम के एक महान और ज्ञानी ऋषि थे। उनकी बहुत ही कुशल और बुद्धिमान पत्नी थीं मैत्रेयी जिन्हें वेदों का बहुत ज्ञान था, उन्होंने ऋग्वेद में शामिल दस भजन भी रचे थे।
उन्होंने ऋषि याज्ञवल्क्य के साथ वेदों पर चर्चा करना पसंद था। जब याज्ञवल्क्य अपने शिष्यों को ज्ञान देते थे तब मैत्रेयी भी उन्हें सुनती थी।
एक दिन ऋषि याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, “मैं अपना सारा धन तुम्हें देकर, जंगल जाकर ध्यान करूँगा और वहीं अपना सारा जीवन बिताऊँगा। तुम इस धन का इस्तेमाल कर अपना जीवन सुख से बिता सकती हो।”
इस बात पर मैत्रेयी ने अपने पति से पूछा, “स्वामी, अगर मुझे इस धरती का सारा धन मिल जाए तो क्या मैं अमर हो जाऊँगी?”
याज्ञवल्क्य ने जवाब दिया, “नहीं, उस धन से तुम्हारा जीवन सुख-सुविधा में बीतेगा पर तुम अमर नहीं होगी।” याज्ञवल्क्य का जवाब सुनकर मैत्रेयी ने उनसे कहा, “मुझे धन-दौलत नहीं चाहिए, मुझे वह ज्ञान दीजिए जिससे मैं अमर हो जाऊँ।”
याज्ञवल्क्य ने उन्हें समझाया, “मैत्रेयी, जिस तरह जल के बिना सागर नहीं हो सकता, नाक के बिना खुशबू का पता नहीं चल सकता, जीभ के बिना किसी स्वाद का पता नहीं चल सकता, बिना सुने कोई ज्ञान नहीं हो सकता, बिना हाथ के कोई काम नहीं हो सकता, बिना पैर के चला नहीं जा सकता, शब्दों के बिना कोई किताब नहीं लिखी जा सकती वैसे ही भगवान या सच के बिना यह संसार या उसकी कोई भी चीज़ नहीं हो सकती। हम भगवान से अलग नहीं है बल्कि भगवान और हम एक ही हैं और भगवान हमेशा रहते हैं। जो इस सच को समझ जाता है वो अमर हो जाता है।”
मैत्रेयी ने याज्ञवल्क्य की दी हुई सीख पर बहुत समय तक विचार किया और उसे समझ कर अमर हो गई। ज्ञान से बढ़कर और कुछ नहीं क्योंकि सच्चे ज्ञान से ही हम भगवान को पा सकते है।
नोट: बच्चों की मानसिकता को ध्यान में रखते हुए हमने कहानी में कुछ बदलाव किए हैं।
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स्रोत: बृहदारण्यक उपनिषद्
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Story type: Motivational
Age: 7+years; Class: 3+