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मीना को स्टीकर नहीं मिला

यह कहानी सिखाती है कि सच्चा सुख अपने कर्तव्यों को ईमानदारी और निःस्वार्थ भाव से निभाने में है, बिना किसी पुरस्कार या पहचान की आशा किए।

मीना को स्टीकर नहीं मिला

कहानी 


मीना को अपनी कक्षा में सबकी मदद करना बहुत पसंद था। जब उसकी टीचर ने 'हेल्पर्स' वीक की घोषणा की, तो वह बहुत खुश हुई। हर बच्चे को पूरे सप्ताह के लिए एक काम दिया गया।


मीना को ड्राइंग की शेल्फ को साफ करने का काम मिला। हालाँकि यह कोई खास काम नहीं था---शेल्फ में टपकते गोंद की बोतलें, टूटे हुए रंग, और हर जगह चिपका हुआ चमकीला (ग्लिटर) था,

लेकिन मीना को इससे कोई परेशानी नहीं हुई। वह हर दिन, बड़े मन से, शेल्फ़ को साफ करती, बोतलों को ध्यान से पोंछती, ब्रश को सही तरीके से रखती, और बचे हुए टुकड़ों को उठाती।




मीना की नजर गोल्डन "बेस्ट हेल्पर" स्टीकर पर थी। वह नोटिसबोर्ड पर चमक रहा था, और मीना उसे पाना चाहती थी!


उसकी दोस्त रिया ने कहा, "यह स्टीकर तुम्हें ही मिलेगा। तुमने बहुत मेहनत की है!"


मीना मुस्कुराई और उसे खुद पर बहुत गर्व हुआ।


लेकिन जब शुक्रवार आया, तो स्टीकर सिड को दिया गया, जिसने लाइब्रेरी में मदद की थी।




मीना ने संदेह में आँखे झपकाईं। "सिड ने तो सिर्फ़ बुधवार से मदद करना शुरू किया था!" मीना ने सोचा।


मीना को अपने पेट में अजीब-सा महसूस हुआ। उसने यह दिखाने की कोशिश नहीं की, लेकिन वह थोड़ी नाराज़ थी।


उस शाम, मीना ने अपने पसंदीदा आम भी नहीं खाए।


उसने अपनी माँ से कहा, "मैंने हर दिन मन लगाकर सफ़ाई की, फ़िर भी मुझे स्टीकर नहीं मिला।"


माँ ने धीरे से पूछा, "क्या तुमने शेल्फ़ इसलिए साफ़ किया ताकि तुम्हें स्टीकर मिले, या फिर इसलिए कि तुम्हें मदद करना अच्छा लगता है?"


मीना ने कुछ देर सोचा।


उसे याद आया कि शेल्फ़ को साफ देखना, उसे कितना अच्छा लगता था। अब क्लास के बच्चों को कलर्स और मार्कर आसानी से मिल जाते थे, यह देखकर मीना को बहुत खुशी होती थी।


"शायद... दोनों," मीना ने ईमानदारी से माँ को जवाब दिया।


अगले सप्ताह, मीना स्कूल वापस गई। अब उसपर शेल्फ़ की सफ़ाई की जिम्मेदारी नहीं थी, लेकिन जब उसने फर्श पर एक क्रेयॉन बॉक्स देखा, तो उसने उसे उठाया और शेल्फ़ पर सही जगह रख दिया। वह जहाँ भी मदद कर सकती थी, मदद करती रही। उसने मदद करना बंद नहीं किया, भले ही अब मदद करने के लिए कोई स्टीकर नहीं मिल रहा था।




उसकी टीचर ने देखा और वह मुस्कुराईं। उन्होंने कहा, "अच्छा काम किया, मीना।"


कभी-कभी, सबसे अच्छा पुरस्कार यह होता है कि आप यह महसूस करें कि आपने सही काम किया, बिना किसी इनाम की इच्छा के।


कृष्ण कहते हैं कि हमें अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से करना चाहिए, बिना यह सोचे कि हमें इसके बदले क्या मिलेगा।


मीना ने यह महत्वपूर्ण सीख अपनी छोटे से तरीके से सीखी—और यही उसे असली हीरो बनाती है।

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श्लोक


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ||

Karmanyevadhikaraste Ma Phaleshu Kadachana

Ma Karma phalaheturbhurma Te Sangostvakarmani

स्रोत: भगवद गीता, अध्याय2, श्लोक 47


अर्थ

तुम्हारा अधिकार केवल अपने काम को पूरे मन से करने पर है, उसके फल पर नहीं। इसलिए काम का फल पाने की चिंता मत करो और आलस्य या काम न करने की आदत से भी दूर रहो।

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Story type: Spiritual

Age: 7+years; Class: 3+

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