कृष्णा ने उठाया गोवर्धन पर्वत - कृष्ण लीला
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें निष्काम भाव से अपना काम करना चाहिए और अपने काम के बदले कुछ पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए ।
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एक बार कृष्ण ने देखा कि वृन्दावन के लोग ज़ोर-शोर से किसी पूजा की तैयारी में लगे हुए थे। कृष्ण ने अपने पिता नन्द से पूछा कि यह किस पूजा की तैयारी चल रही है। नन्द ने कृष्ण से कहा कि वर्षा ऋतु आने वाली है इसलिए सभी वृन्दावनवासी बादलों के राजा इंद्र को खुश करने के लिए पूजा करने वाले हैं।
जब इंद्रदेव खुश होंगे तब वृंदावन में अच्छी बारिश होगी जिससे हमारी फसल अच्छी होगी और सबका जीवन खुशहाल होगा। लोग धन-दौलत, खाने की स्वादिष्ट चीज़े, सुंदर कपड़े और भी कई अच्छी-अच्छी चीज़ें पूजा में इंद्र देव को भेंट करेंगे।
कृष्ण को यह बात कुछ ठीक नहीं लगी। वह नन्द बाबा से बोले, “बारिश करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। किसी को अपना कर्तव्य पूरा करने के बदले भेंट या उपहार नहीं लेना चाहिए।”
कृष्ण गाँववालों को समझाते हैं कि अगर हमें पूजा करनी ही है तो अपनी गायों की करनी चाहिए जो हमें दूध देती हैं और गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए जिनकी हरी-हर घास चर कर हमारी गायें अपना पेट भरती हैं। ये दोनों हमसे बदले में कुछ नहीं माँगते।
वृन्दावन वासियों ने कृष्ण की बात मान ली और इंद्र की पूजा छोड़कर कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। लोगों ने सारी चीज़ें इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत को भेंट कर दी।
इंद्रदेव को यह सब देख कर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गाँववालों को सबक सिखाने की ठान ली।
इंद्रदेव ने अपनी शक्ति दिखाई, वृन्दावन में तेज़ तूफ़ान आया और बहुत ज़ोरों की बारिश हुई। लोग परेशान होकर अपनी रक्षा के लिए कृष्ण से प्रार्थना करने लगे।
कृष्ण सभी लोगों को गोवर्धन पर्वत के पास ले गए, कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठा लिया, सभी लोग पर्वत की छाँव में खड़े हो गए और बारिश और तूफ़ान से बच गए। लगातार सात दिनों तक बारिश होती रही पर सभी लोग कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की सुरक्षा में थे।
इंद्रदेव को अपनी गलती समझ आई और उन्हें भगवान की शक्ति का एहसास हुआ। इंद्रदेव ने कृष्ण और वृन्दावन वासियों से माफ़ी माँगी।
इस कहानी से यह सीख मिलती है कि हमें निष्काम भाव से अपना काम करना चाहिए और अपने काम के बदले कुछ पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए साथ ही हमें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए कि वह मुसीबत में हमारी मदद ज़रूर करेंगे।
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स्रोत: भागवतं
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Story type: Spiritual, Mythological
Age: 7+years; Class: 3+