प्रह्लाद की कहानी
यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हमारे मन में विश्वास है, तो संसार की हर चीज़ में हमें भगवान दिखेंगे।
Story
बहुत पहले की बात है, राक्षसों का एक राजा था, हिरण्यकश्यप। हिरण्यकश्यप ने कड़ी तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान पाया था कि ना ही कोई इंसान उसे मार सके ना कोई जानवर, किसी भी हथियार से उसकी मृत्यु ना हो, ना वो दिन में मरे ना रात में, ना धरती पर ना आकाश में, ना घर के अंदर ना घर के बाहर।
हिरण्यकश्यप को अपनी ताकत का बहुत घमंड था। वह खुद को ही भगवान मानता था और अपनी प्रजा को उसकी पूजा करने के लिए कहता था। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद। वह भगवान विष्णु का एक सच्चा भक्त था। उसने अपने पिता को भगवान मानने से मना कर दिया। उसके लिए केवल एक ही भगवान थे, भगवान विष्णु।
हिरण्यकश्यप को प्रह्लाद पर बहुत गुस्सा आया और उसने अपने सेवकों को उसे कड़ी सजा देने का आदेश दिया।
(हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मरवाने के कई प्रयास किए जैसे प्रह्लाद को पहाड़ से गिरवाया, हाथियों से कुचलवाने की कोशिश की, उसके भोजन में ज़हर मिलवाया और अपनी बहन होलिका की मदद से उसे जलाकर मारने को कोशिश की- होलिका के पास वरदान था कि आग उसे नहीं जला पाएगी।
उसने प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर आग में प्रवेश किया, वह खुद जल गई पर प्रह्लाद को कोई नुकसान नहीं हुआ। माता- पिता से अनुरोध है कि बच्चों की भावनाओं का ध्यान रखते हुए उन्हें इस विषय में बताएं।)
पर प्रह्लाद को भगवान विष्णु पर पूरा विश्वास था कि वो उसकी रक्षा ज़रूर करेंगे। और ऐसा ही हुआ, प्रह्लाद को किसी भी सजा से कोई नुकसान नहीं हुआ। और भगवान विष्णु के लिए उसकी भक्ति और बढ़ गई।
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समझाने की एक आखिरी कोशिश की। उसने प्रह्लाद को अपने दरबार में बुलाया और उससे कहा, “अगर तुम मेरी दी हुई कड़ी सजा से बचना चाहते हो तो बुलाओ अपने भगवान को। कहाँ हैं तुम्हारे भगवान?”
प्रह्लाद ने जवाब दिया, “मेरे भगवान तो संसार की हर चीज़ में हैं।
हिरण्यकश्यप ने एक खंभे की तरफ इशारा करके पूछा, “क्या तुम्हारे भगवान इस खंभे में भी हैं?”
“हाँ बिलकुल हैं,” प्रह्लाद ने पूरे विश्वास से कहा।
प्रह्लाद की बात सुनकर, हिरण्यकश्यप ने उस खंभे पर अपनी गदा से ज़ोरदार हमला किया। तभी खम्भा टूटा और उसमें से भगवान विष्णु के एक अवतार, भगवान नरसिंह प्रकट हुए। उनका चेहरा शेर का था पर शरीर इंसान का था। वो ना ही पूरी तरह इंसान थे और ना ही पूरी तरह जानवर।
वह हिरण्यकश्यप को खींचकर, महल की चौखट पर ले गए। अब वो ना तो घर के अंदर था, ना घर के बाहर। भगवान नरसिंह ने उसे अपनी गोद में लिटाया और अपने नाखूनों से उसका वध किया।
प्रह्लाद की सच्ची भक्ति से भगवान बहुत प्रसन्न थे, उन्होंने उससे मनचाहा वरदान मांगने को कहा।
प्रह्लाद ने कहा, “मुझे यह वरदान दीजिए कि मैं हमेशा आपकी भक्ति करता रहूँ और हमेशा सच की राह पर चलूँ।“ भगवान ने उसे यही आशीर्वाद दिया। प्रह्लाद बड़े होकर राजा बने और उन्होंने भगवान कि भक्ति करते हुए अपनी सभी कर्तव्यों का अच्छे से पालन किया।
इस कहानी से हमें दो सीख मिलती है।
1. अगर हमारे मन में विश्वास है, तो संसार की हर चीज़ में हमें भगवान दिखेंगे।
2. हमारे सामने चाहे कितनी भी मुश्किल आए, हमें भी प्रह्लाद की तरह हमेशा सच और सही का साथ देना चाहिए।
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स्रोत: भागवतं
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Story type: Mythological, Motivational
Age: 6+years; Class: 2+