अर्जुन की दुविधा
यह कहानी हमें सिखाती है कि कर्तव्य से बड़ा कुछ नहीं इसलिए हमें हमेशा अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए।
Story
यह कहानी महाभारत से है, पाण्डु और धृतराष्ट्र नाम के दो भाई थे। ध्रतराष्ट्र पाण्डु से बड़े थे पर वो देख नहीं सकते थे इसलिए पाण्डु राजा बने। पाण्डु के पाँच पुत्र थे जिन्हें पांडव कहा जाता था और धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे जिन्हें कौरव कहा जाता था।
पाण्डु बीमार रहते थे और जल्दी ही उनकी मृत्यु हो गई। पाण्डु की मृत्यु के बाद धृतराष्ट्र राजा बने और उन्होंने पांडवों और कौरवों की परवरिश की।
धृतराष्ट्र के बाद पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर को राजा बनना था। पर कौरवों का बड़ा भाई दुर्योधन, युधिष्ठिर से जलता था और खुद राजा बनना चाहता था।
दुर्योधन ने चालाकी से युधिष्ठिर को एक खेल (चौसर) में हराया। खेल की शर्त के हिसाब से दुर्योधन खुद राजा बन गया और पांडवो को उनकी पत्नी द्रौपदी के साथ जंगल भेज दिया।
जंगल में अपना समय पूरा करने के बाद पांडव वापस आए और उन्होंने अपने हिस्से का राज्य माँगा। पर दुर्योधन ने उन्हें राज्य देने से मना कर दिया।
पांडवों और कौरवों ने युद्ध करके इस मामले को सुलझाने का फैसला किया। पांडव और कौरव युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र के मैदान में आमने-सामने आए।
श्रीकृष्ण पांडवों के तीसरे भाई अर्जुन के सारथी थे। वह अर्जुन के रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले गए। अर्जुन के सामने उनके ही भाई, दोस्त और रिश्तेदार थे जिनसे उन्हें युद्ध करना था।
यह देखकर अर्जुन कमज़ोर पड़ गए और उन्होंने कृष्ण से कहा कि वह अपने ही सगे-संबंघियों पर हथियार नहीं चलाना चाहते। अर्जुन अपने कर्तव्य से पीछे हट रहे थे।
तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि एक योद्धा का यही धर्म है कि वह सच्चाई को जीत दिलाने के लिए बुराई से लड़े, भले ही वो बुराई उसके सामने उसके प्रियजनों के रूप में खड़ी हो। कर्तव्य से बड़ा कुछ नहीं इसलिए हमें हमेशा अपना कर्तव्य पूरा करना चाहिए। यह सुनकर अर्जुन ने अपना कर्तव्य स्वीकार किया और युद्ध के लिए तैयार हो गए।
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स्रोत: महाभारत
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Story type: Motivational
Age: 7+years; Class: 3+