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चिक्की की चिंता

यह कहानी हमें सिखाती है कि सच को स्वीकार करें, बीते हुए समय को भूल जाएँ, भविष्य की चिंता न करें और वर्तमान का आनंद लें।

Chikki-ki-Chinta

कहानी


एक शांत जंगल में चिक्की नाम की एक चिड़िया रहती थी। वह छोटी थी, उसके मुलायम भूरे पंख थे, और उसे पेड़ से पेड़ पर फुदकना बहुत पसंद था। लेकिन चिक्की की एक समस्या थी—वह हमेशा चिंता करती रहती थी।


चिक्की हमेशा बीते समय के बारे में सोचती और भविष्य की चिंता करती रहती थी। वह हमेशा सोचती, "पिछले साल मेरा घोंसला कितना सुंदर था, लेकिन तूफ़ान ने उसे नष्ट कर दिया। मेरा नया घोंसला कितना छोटा है।"


वह अपने भविष्य की चिंता करती रहती थी।


उसके मन में हमेशा सवाल चलते रहते थे, जैसे, "क्या मैंने कल सही फ़ैसला लिया?" या "अगर कल कुछ बुरा हो गया तो क्या होगा?" "अगर तूफ़ान ने फिर से मेरा घर नष्ट कर दिया तो क्या होगा?" "क्या मैं आसमान में ऊँचा उड़ पऊँगी?"


उसके दोस्त हमेशा उसे खुश करने की कोशिश करते, लेकिन उनकी सारी कोशिशें बेकार हो जातीं।


"चिक्की," बुद्धिमान बूढ़े उल्लू मिस्टर हूट ने पूछा, "तुम हमेशा क्यों चिंता करती रहती हो? सच तो हमेशा सच ही रहेगा, चाहे हम कुछ भी करें।"


लेकिन चिकी कुछ समझ नहीं पाई और बात को अनसुना कर दिया। समय बीतने के साथ, चिक्की और ज़्यादा चिंता करने लगी, और तनाव के कारण उसकी तबीयत खराब रहने लगी।


एक दिन चिक्की नदी के पास एक बूढ़े कछुए से मिली, जिसका नाम ध्रुव था। ध्रुव बहुत बुद्धिमान और दयालु था। उसने देखा कि चिक्की परेशान लग रही थी। उसने पूछा, "छोटी चिड़िया, तुम इतनी उदास क्यों दिख रही हो?"


"मैं हमेशा चिंतित रहती हूँ, ध्रुव," चिक्की ने कहा। "मैं सोचती रहती हूँ कि कल मैंने क्या गलत किया और कल क्या गलत हो सकता है। मैं अपने और अपने बच्चों के भविष्य की चिंता करती रहती हूँ। मुझे समझ नहीं आता कि इसे कैसे रोकूँ।"


ध्रुव मुस्कुराया और बोला, "आओ, मेरे साथ नदी के पास बैठो। मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूँ।"


चिक्की पास के एक पत्थर पर बैठ गई।




"नदी को देखो," ध्रुव ने कहा। "देखो कैसे पानी बहता है? यह उन पत्थरों के बारे में नहीं सोचती जो यह पार कर चुकी है और न ही इस बात की चिंता करती है कि आगे क्या होगा। नदी का पानी बस बहता रहता है, क्योंकि यही उसका सच है।"


चिक्की ने पानी को ध्यान से देखा। "लेकिन अगर यह किसी डरावनी जगह में बह जाए तो?" उसने पूछा।


अगर नदी को गुफा से गुज़रना पड़े, तो वह गुज़रेगी; अगर उसे शहरों की गंदगी से गुज़रना पड़े, तो वह गुज़रेगी। नदी का सच होता है बहना," ध्रुव ने कहा। "चाहे वह कहीं भी जाए, वह बहती रहती है क्योंकि वह अपने स्वभाव को नहीं बदल सकती। जीवन भी ऐसा ही है। सच को बदला नहीं जा सकता। चिंता करने से सच नहीं बदलता।सच वैसा ही रहता है जैसा वह है।"


चिक्की ने इस पर सोचा। "तो, आपका मतलब है कि मुझे चिंता करना छोड़ देना चाहिए क्योंकि सच चाहे जो भी हो, वही रहेगा?"


"बिलकुल सही," ध्रुव ने कहा। "अगर तुम सच को स्वीकार करोगी, तो तुम बहुत ख़ुशी महसूस करोगी।"


चिक्की ने इसे आज़माने का फैसला किया। जब भी उसे चिंता होने लगती, वह नदी के बारे में सोचती। धीरे-धीरे वह बेहतर महसूस करने लगी। वह खुशी-खुशी गाने लगी, अपने दोस्तों के साथ खेलने लगी और अपने आसपास की खूबसूरती को देखने लगी।


एक शाम, जब सूरज ढल रहा था और आसमान नारंगी और गुलाबी हो गया था, चिक्की अपने घोंसले में बैठकर मुस्कुराई। "सच हमेशा सच ही रहेगा," उसने सोचा। "चिंता करने से यह नहीं बदलेगा।लेकिन मैं इस पल का आनंद ले सकती हूँ और खुश रह सकती हूँ।"



उस दिन से चिक्की ने अपने दिन खुशी-खुशी बिताने शुरू कर दिए और अपने दोस्तों को भी ऐसा ही करने की सीख दी।उसे एहसास हुआ कि सच नहीं बदलता, और उसे स्वीकार करने से शांति और खुशी मिलती है।

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एक कहूँ तो है नहीं, दूजा कहूँ तो गरि।
है जैसा तैसा ही रहे, कहे कबीर विचारि।।

Ek kahun to hai nahin, duja kahun to gar
Hai jaisa taisa hi rahe, kahe Kabir vichar


स्रोत: कबीर दास दोहा


अर्थ:

"एक" शब्द उस परम सत्य, निराकार और एकमात्र यथार्थ की ओर संकेत करता है।

कबीर कहते हैं कि अगर मैं कहूँ कि भगवान एक हैं, तो यह पूरी तरह सही नहीं है, क्योंकि भगवान "एक" से भी परे हैं। अगर मैं कहूँ कि भगवान दो हैं, तो यह भी सही नहीं है, क्योंकि भगवान हर जगह और हर चीज़ में हैं। भगवान वैसे ही हैं जैसे वह हैं। उन्हें शब्दों में पूरी तरह से समझाया या परिभाषित नहीं किया जा सकता।

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Story type: Motivational

Age: 7+years; Class: 3+

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