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रहस्यमयी रत्न
जो ताकत और अच्छाई हम बाहर ढूँढते हैं, वह पहले से ही हमारे अंदर मौजूद ह ै—हमें बस उसे खोजने की ज़रूरत है।

कहानी
अरुण कक्षा सात का एक छोटा लड़का था, जो अक्सर उदास रहता था। उसे लगता था कि वह बाकी बच्चों की तरह खास नहीं है। उसे लगता था कि वे हर चीज़ में उससे बेहतर हैं, और इसी वजह से वह अपने बारे में अच्छा महसूस नहीं करता था।
एक दिन अरुण और उसका परिवार उसके दादाजी से मिलने पास के शहर गया। अरुण उदास, चुप और शांत था।
यह देखकर दादाजी उसे पीछे आँगन में ले गए।
अरुण ने आँगन में एक छोटा सा कमरा देखकर आश्चर्य से पूछा, "दादाजी, इस कमरे में क्या है?"
दादाजी मुस्कुराए और बिना कुछ कहे उसे कमरे के अंदर ले गए। वहाँ अरुण ने कई छोटी-छोटी चीज़ें देखीं, जैसे एक पुरानी घड़ी, फोटो फ्रेम, प्राचीन किताब, अजीब सी दिखने वाली तलवार, पुराना टेलीफोन और कई अन्य चीज़ें।
मेज़ पर अरुण ने एक फीका सा, ग्रे रंग का पत्थर देखा। वह बिल्कुल भी खास नहीं लग रहा था।
"आपने यह साधारण पत्थर क्यों रखा है? इसमें तो कोई खास बात नहीं है," अरुण ने पूछा।
दादाजी मुस्कुराए और बोले, "यह सिर्फ एक पत्थर नहीं है। इसके अंदर एक चमकदार रत्न छिपा हुआ है। अगर तुम इसे ध्यान से घिसोगे, तो इसकी खूबसूरती और चमक देख पाओगे।"
अरुण को जिज्ञासा हुई, उसने दादाजी से पूछा क्या वह पत्थर अपने साथ ले जा सकता है। घर जाकर अरुण रोज़ उसे घिसने लगा। शुरुआत में पत्थर वैसा ही दिखता था, लेकिन धीरे-धीरे उसकी खुरदरी सतह चिकनी होने लगी। थोड़ा- थोड़ा करके वह चमकने लगा।
अरुण लगातार उस पर काम करता रहा। जैसे-जैसे पत्थर और सुंदर बनता गया, अरुण को खुद पर गर्व महसूस होने लगा और आत्मविश्वास बढ़ने लगा। उसे यह भी समझ में आया कि उसे यह काम अच्छा लगने लगा है, भले ही इसमें समय लगे। एक सुबह जब उसने उस पत्थर को सूरज की रोशनी में उठाकर देखा, तो वह चमकने लगा। वह अब एक खूबसूरत रत्न बन चुका था!
उत्साहित होकर अरुण अपने दादाजी को चमकता हुआ रत्न दिखाने गया।

दादाजी फिर मुस्कुराए और बोले, "देखा? खूबसूरती तो पहले से ही अंदर थी। बस उसे बाहर लाने के लिए धैर्य की जरूरत थी।"
अरुण ने सोचा और कहा, "मुझे लगता है, मैं भी इस रत्न की तरह हूँ। शायद मैं अपनी खासियत नहीं देख पाता, लेकिन अगर मैं पूरी कोशिश करूँ और खुद पर विश्वास रखूँ, तो मैं भी चमक सकता हूँ।"
दादाजी ने सिर हिलाते हुए कहा, "बिल्कुल सही। असली ख ूबसूरती तुम्हारे अंदर से आती है। वह हमेशा अंदर होती है, बस चमकने का इंतजार करती है। तुम्हारे अंदर भगवान की ताकत और अपार क्षमता है।"
उस दिन के बाद अरुण ने दूसरों जैसा बनने की चिंता छोड़ दी। वह उन चीज़ों पर काम करने लगा जो उसे पसंद थीं, अपने दोस्तों की मदद करता और खुश रहता। उसे एहसास हुआ कि असली खूबसूरती और खुशी हमारे अंदर होती है। शांति और खुशी पाने के लिए उसे दूसरों जैसा बनने की ज़रूरत नहीं थी।
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Kabir Das Doha
कस्तूरी कुंडल बसै, मृग ढूँढे बन माही;
ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाही।
Kasturi Kundal Base, Mrig Dhunde Ban Maahi;
Aise Ghat Ghat Ram Hai, Duniya Dekhe Naahi
अर्थ
कबीर दास कहते हैं कि जैसे हिरन यह नहीं जानता कि कस्तूरी की मीठी खुशबू उसी के शरीर से आ रही है और वह इसे जंगल में ढूँढता है, वैसे ही लोग यह नहीं समझते कि भगवान उनके अंदर हैं और उन्हें बाहर खोजते रहते हैं।
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Story type: Motivational
Age: 7+years; Class: 3+