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विशाल कछुआ जिसने पर्वत उठाया

यह कहानी हमें सिखाती है कि हर मुश्किल में भी हमें संतुलित और मजबूत रहना चाहिए।

Kurma Avatar ki Kahani

कहानी बहुत समय पहले की बात है, एक जादुई समुद्र था जिसे क्षीर सागर कहा जाता था। यह कोई साधारण समुद्र नहीं था—इसके अंदर कई जादुई चीज़ें और खजान छिपा हुआ था। इन खज़ानों में एक था अमृत, ऐसा अमूल्य रस जिसे पीने वाला सबसे शक्तिशाली और अमर हो जाता था!


देवता और असुर, दोनों ही सबसे शक्तिशाली और अमर बनना चाहते थे। वे ब्रह्मांड के रक्षक, भगवान विष्ण के पास गए और उनसे मदद माँगी। भगवान विष्णु मुस्कराए और बोले, “अगर तुम अमृत चाहते हो, तो तुम्हें मिलकर काम करना होगा और इस समुद्र का मंथन करना होगा।”


“समुद्र का मंथन? वो कैसे?” देवता और असुर हैरान रह गए।


भगवान विष्णु ने समझाया, “मंदराचल पर्वत को मथनी की तरह और वासुकी नाग को रस्सी की तरह इस्तेमाल करो।”

देवता और असुर मान गए और साथ मिलकर समुद्र मंथन शुरू किया। लेकिन जैसे ही उन्होंने मंथन शुरू किया, पर्वत, अपने भार के कारण समुद्र में डूबने लगा!


तभी भगवान विष्णु ने अपना दूसरा अवतार – कूर्म अवतार लिया। वे एक विशाल कछुए के रूप में प्रकट हुए और धीरे से समुद्र के भीतर चले गए। उन्होंने पर्वत को अपनी पीठ पर उठाकर उसे डूबने से बचा लिया।

“अब तुम मंथन जारी रख सकते हो,” भगवान कूर्म ने शांत स्वर में कहा। “मैं तुम्हें स्थिरता और शक्ति दूँगा।”

फिर देवता और असुर मंथन करने लगे। समुद्र से बहुत सी चीज़ें निकलीं—कुछ सुंदर और कुछ डरावनी। सबसे पहले निकला हलाहल, एक ज़हरीला विष, जो पूरी सृष्टि को नष्ट कर सकता था! तब भगवान शिव ने वह विष पी लिया और सबको बचा लिया।


मंथन के दौरान कई खज़ाने निकले—कामधेनु (इच्छा पूरी करने वाली गाय), कल्पवृक्ष (इच्छा पूर्ण करने वाला पेड़), और ऐरावत (देवता इंद्र का सफेद हाथी)। अंत में, बहुमूल्य अमृत भी बाहर आया!


तब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप लिया और चतुराई से सारा अमृत देवताओं में बाँट दिया और सृष्टि का संतुलन बनाए रखा।


कहानी का गहरा अर्थ


यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारा मन भी एक समुद्र जैसा होता है। जब हम शांत बैठकर अपने विचारों और कर्मों पर ध्यान देते हैं, तो हम अपने मन का मंथन करते हैं। इससे अच्छे विचार (जैसे अमृत) और बुरे विचार (जैसे विष) दोनों बाहर आते हैं।


देवता और असुर हमारे अंदर की अच्छी और बुरी प्रवृत्तियों जैसे हैं। हर दिन हम जो फैसले लेते हैं, वे तय करते हैं कि हम अमृत की ओर बढ़ेंगे या विष की ओर।


कूर्म अवतार, यानी कछुए का रूप, हमें सिखाता है कि शांति, स्थिरता और अनुशासन बहुत ज़रूरी हैं। 

जैसे कछुआ अपने खोल में छिप जाता है, वैसे ही हमें भी कभी-कभी टीवी, मोबाइल और शोर से दूर रहकर शांत समय बिताना चाहिए। इससे हमें सच्चा आनंद मिलता है।


तो आइए, हम भी भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को याद करें और अपने मन को स्थिर और दिल को शुद्ध बनाएँ!

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श्लोक 


यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वश:
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता


स्रोत: भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 58


अर्थ 

जब हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना सीखते हैं, तो हम अधिक समझदार और शांत हो जाते हैं।

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Story type: Spiritual

Age: 7+years; Class: 3+

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