परशुराम और कार्तवीर्य अर्जुन
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची ताकत अपनी शक्तियों को समझदारी, करुणा और न्याय के साथ उपयोग करने में है।

कहानी
एक बार, ऋषि जमदग्नि, जो भगवान परशुराम के पिता थे, के पास एक जादुई गाय थी जिसका नाम सुरभि था, जिसे कामधेनु भी कहते थे। यह गाय अनगिनत भोजन और दूध दे सकती थी। ऋषि इसका उपयोग लोगों की मदद करने और भगवान की पूजा करने के लिए करते थे।
एक दिन, कार्तवीर्य अर्जुन, जो एक शक्तिशाली लेकिन घमंडी राजा था, अपनी सेना के साथ ऋषि के घर आया। कामधेनु गाय की मद द से, ऋषि जमदग्नि ने राजा और उसकी सेना का सत्कार किया।

ऋषि जमदग्नि ने राजा और उसके सैनिकों को स्वादिष्ट भोजन कराया और उनकी ज़रूरतों का पूरा ध्यान रखा, जिससे वे सभी खुश और संतुष्ट हो गए।
लेकिन राजा कार्तवीर्य अर्जुन ने सोचा कि जमदग्नि उससे ज़्यादा शक्तिशाली हैं, क्योंकि उनके पास जादुई गाय कामधेनु थी। इसलिए, उसने उस गाय को लेने की इच्छा जताई। राजा कामधेनु की शक्ति देखकर चकित था और उसने गाय को अपने लिए माँग लिया। लेकिन जमदग्नि ने मना कर दिया और कहा कि वह इस गाय का उपयोग अपनी प्रार्थना और दूसरों की मदद के लिए करते हैं। यह सुनकर राजा गुस्से में आ गया और उसने सैनिकों को गाय को जबरन ले जाने का आदेश दिया।
राजा के सैनिक कामधेनु को बलपूर्वक ले गए और ऋषि के शांत आश्रम को नष्ट कर दिया। वे रोती हुई कामधेनु और उसके बछड़े को अपने राज्य हैहय ले गए।
बाद में, जब परशुराम घर लौटे और आश्रम की यह हालत देखी, तो वह बहुत क्रोधित हुए। उनके पिता ने उन्हें पूरी घटना सुनाई। यह सुनकर परशुराम के क्रोध की सीमा न रही और उन्होंने हैहय राज्य जाने का निश्चय किया। जब वे वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने कामधेनु को बँधा हुआ और रोता हुआ देखा। परशुराम ने गाय के पास जाकर उसे गले से लगा लिया।

परशुराम ने राजा कार्तवीर्य को हराकर कामधेनु को बचा लिया। वह गाय को वापस अपने पिता के आश्रम ले आए, जिससे उनके पिता को उन पर बहुत गर्व हुआ।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। राजा के बेटे इस घटना से बहुत गुस्से में थे। जब परशुराम घर पर नहीं थे, तब उन्होंने ऋषि जमदग्नि के आश्रम पर हमला किया और उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया। जब परशुराम वापस आए, तो उन्होंने अपनी माँ को रोते हुए देखा। उनकी माँ ने उन्हें पूरी घटना बताई और दुख में 21 बार अपने सीने पर प्रहार किया।
दुख और गुस्से से भरे परशुराम ने दुनिया को बेहतर बनाने का संकल्प लिया। उन्होंने सभी निर्दयी राजाओं को सज़ा देने का प्रण लिया। परशुराम ने 21 बार पूरी धरती की यात्रा की, बुरे लोगों को सबक सिखाया और अच्छे लोगों की मदद की।

अंत में, परशुराम ने एक बड़ा यज्ञ किया और अपनी सारी ज़मीन दान कर दी, जिससे उन्होंने यह दिखाया कि सच्ची ताकत उदारता में होती है, न कि केवल अपनी शक्ति दिखाने में।
तो बच्चों, इस कहानी से हम सीखते हैं कि हमें दूसरों की चीज़ों से कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। सच्ची ताकत अपनी शक्ति का सही तरीके से उपयोग करने और साहस और करुणा के साथ धर्म का पालन करने में है।
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श्लोक
अभयम् सत्त्वसंशुद्धिः ज्ञानयोगव्यवस्थितिः
दानम् दमः च स्वाध्यायः तपः आर्जवम्
Abhayam sattvasamshuddhir jnanayoga vyavasthitih
Danam damash cha yajnah cha svadhyayas tapa arjavam
स्रोत: भगवद गीता अध्याय 16, श्लोक 1
अर्थ
निर्भयता, हृदय की शुद्धता, ज्ञान और योग, दान, आत्मसंयम, यज्ञ, शास्त्रों का अध्ययन, आत्मअनुशासन और सरलता—ये सभी दिव्य स्वभाव के गुण हैं।
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Story type: Motivational
Age: 7+years; Class: 3+
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