भगवान परशुराम ने धर्म की रक्षा की
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें भगवान परशुराम की तरह साहसी बनाना चाहिए और हमेशा सही का साथ देना चाहिए।

कहानी
आर्या एक छोटी बच्ची थी जो अपनी कल्पनाओं की दुनिया में रहती थी उसे किताबें पढ़ना और कहानियाँ सुनना बहुत पसंद था।कहानियाँ सुनते हुए वह अपनी कल्पनाओं की दुनिया में खो जाती थी।हर रात खाना खाने के बाद वह अपने दादाजी के कमरे में कहानी सुनने जाती थी।उसके दादाजी को भी उसे कहानियाँ सुनाना बहुत अच्छा लगता था।
आज रात जब आर्या अपने दादाजी के कमरे में गई, तो वह जल्दी से कंबल के अंदर घुस गई और पूछने लगी, "दादाजी, भगवान परशुराम कौन हैं? आज गीता और राज भगवान परशुराम के बारे में बात कर रहे थे।मैं चुप रही क्योंकि मुझे नहीं पता था कि वह कौन हैं। मुझे उनकी बातों में हिस्सा न ले पाने का बहुत बुरा लगा।तो क्या आज रात आप मुझे भगवान परशुराम की कहानी सुनाएँगे?"

दादाजी ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा, "ठीक है, प्यारी आर्या, आज हम भगवान परशुराम के बारे में जानेंगे।"
दादाजी ने कहानी सुनाना शुरू किया।
बहुत समय पहले, ऋषि भृगु, जो एक ज्ञानी ऋषि थे, ने भृगु वंश की स्थापना की।उनके पुत्र ऋचीक ने राजकुमारी सत्यवती से विवाह किया। सत्यवती ने ऋषि भृगु से प्रार्थना की कि वह उन्हें उनकी माँ को बुद्धिमान और बहादुर पुत्रों का आश ीर्वाद दें। ऋषि भृगु ने उन्हें अलग-अलग प्रार्थनाएँ और अनुष्ठान करने के लिए कहा। लेकिन गलती से सत्यवती ने अपनी माँ की विधियाँ की और उनकी माँ ने सत्यवती की। इस वजह से, ऋषि भृगु ने कहा कि सत्यवती का पुत्र एक योद्धा की तरह बहादुर होगा।
लेकिन सत्यवती ने ऋषि भृगु से प्रार्थना की कि यह आशीर्वाद उनके पुत्र के बजाय उनके पोते को मिले।
कुछ समय बाद सत्यवती के एक पुत्र हुआ, ऋषि जमदग्नि।वह बहुत ज्ञानी थे और उनकी पत्नी देवी रेणुका बहुत ही गुणी थीं। उन्होंने देवताओं से एक विशेष संतान के लिए प्रार्थना की, और उनकी प्रार्थना पूरी हुई!
देवताओं ने उन्हें एक पुत्र का आशीर्वाद दिया जिसका नाम था राम। ऋषि भृगु की बात के अनुसार, सत्यवती के पोते राम का जन्म हुआ जिनमे एक योद्धा की बहादुरी थी, जबकी उनका परिवार ऋषियों का था। राम, भगवान विष्णु के अवतार थे।
"ओ! विष्णुजी के अवतार," आर्या ने कहा।
"हाँ, भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार थे," दादाजी ने कहा। जब राम बड़े हुए, उन्हें भगवान शिव से एक खास उपहार मिला—एक जादुई कुल्हाड़ी जिसे 'परशु' कहते हैं। इसमें बड़ी ताकत थी।

दादाजी, परशु क्या होता है?" आर्या ने पूछा।
"संस्कृत में परशु का मतलब कुल्हाड़ी है, और तभी से उन्हें परशुराम कहा जाता है," दादाजी ने कहा।परशुराम ने इस कुल्हाड़ी का इस्तेमाल अन्याय से लड़ने और धर्म की रक्षा करने के लिए किया।इसलिए उन्हें यह शक्तिशाली नाम मिला।
इस कुल्हाड़ी से वह बुराई से लड़ सकते थे और कमजोरों की रक्षा कर सकते थे।
"ओह! मैं समझ गई!" आर्या ने उत्साहित होकर कहा।
"तो उन्होंने लोगों की कैसे मदद की?" आर्या ने पूछा।
दादाजी बोले, "परशुराम जी ने अपने जीवन में कई पराक्रमी काम किए, जहाँ उन्होंने असहाय लोगों की मदद की।
"एक दिन परशुराम ने देखा कि कुछ राजा गरीब लोगों के साथ बुरा व्यवहार कर रहे थे। वह अन्याय सहन नहीं कर सके।उन्होंने सोचा, ‘यह गलत है!’
अपनी शक्तिशाली कुल्हाड़ी से परशुराम उन क्रूर राजाओं के सामने खड़े हुए और उन्हें दयालु और सदाचारी होना सिखाया।"
एक बार परशुराम जी का सामना घमंडी राजा कर्तविर्य अर्जुन से हुआ, जिसने उनके पिता ऋषि जमदग्नि की जादुई गाय चुरा ली थी। इस अन्याय से क्रोधित होकर, परशुराम ने बहादुरी से राजा से लड़ाई की और उसे हरा दिया।
इसी तरह, परशुराम ने कई राजाओं से लड़ाई की जो अन्याय कर रहे थे और गरीब लोगों को परेशान कर रहे थे।उन्होंने सबको सिखाया कि अहंकार और निर्दोषों को नुकसान पहुँचाना अंत में नाश का कारण बनता है।"
"ओह! वह कितने बहादुर योद्धा थे," आर्या ने कहा।
"तुम्हें भी बहादुर और न्यायप्रिय बनना चाहिए: हमेशा सही के लिए खड़े हो, लेकिन अपनी ताकत का कभी गलत इस्तेमाल मत करना," दादाजी ने कहा।
आर्या ने पूछा, "क्या मैं परशुराम जी की तरह बन सकती हूँ?"
दादाजी ने कहा, "बिलकुल! साहसी, समझदार और मददगार बनो। याद रखना, सच्ची ताकत करुणा और न्याय में होती है।"
जैसे ही आर्या को नींद आने लगी, उसने जम्हाई लेते हुए कहा, "ठीक है, दादाजी, मैं भी अन्याय के खिलाफ खड़ी होऊँगी।मैं अपनी उस दोस्त का साथ दूँगी जिसे मेरी कक्षा क ा एक लड़का परेशान करता है। शुभ रात्रि।मैं कल एक नई कहानी सुनूँगी," और वह सो गई।
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श्लोक
स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि |
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते || 31||
Svadharmam api cha avekshya na vikampitum arhasi
Dharmyad dhi yuddhat shreyo anyat kshatriyasya na vidyate
स्रोत: भगवद् गीता (अध्याय 2, श्लोक31)
अर्थ
अर्जुन, तुम एक योद्धा हो, और तुम्हारा कर्तव्य है सत्य की रक्षा करना। इसलिए डरना मत। अच्छे और न्यायपूर्ण कारण के लिए लड़ने से बड़ा कोई काम नहीं है।
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Story type: Motivational
Age: 7+years; Class: 3+