अयोध्या वापसी : दिवाली की कहानी
यह कहनी हमें सिखाती है कि बुराई का अँधेरा चाहे कितना भी घना हो अच्छाई का प्रकाश उसे मिटा देता है।

Story
रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥
मैं भगवान श्रीराम को प्रणाम करता हूँ, जो शुभ हैं और आनंद देने वाले हैं। वे सबके रक्षक हैं, सीता माता के पति हैं, और रघुकुल के नाथ हैं।
पाँचवी कक्षा में पढ़ने वाली विद्या बड़े ही जोश और उमंग से दिवाली की तैयारियाँ करने में लगी हुई थी। कभी वो माँ के साथ मिठाइयाँ बनाती, कभी दादी के साथ मंदिर को फूलों से सजाती। मंदिर की सजावट करते-करते उसने दादी से पूछा, “दादी, हम दिवाली क्यों मानते हैं?”
दादी लक्ष्मी-गणेश की मूर्ती मंदिर में रखते हुए बोली, “विद्या, दिवाली मानाने के पीछे एक बड़ी ही सुंदर कहानी है। चलो, ये फूलों की माला बनाते-बनाते, तुम्हें दिवाली की कहानी सुनाती हूँ।”
कई साल पहले की बात है। कई साल पहले की बात है, भारत में अयोध्या नाम का एक शहर था जिसके राजा थे दशरथ। राजा दशरथ के चार पुत्र थे, राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। चारों भाई बड़े ही विद्वान और गुणी थे।
चारों भाइयों में श्रीराम सबसे बड़े थे। वह अपने माता-पिता की हर बात मानते थे और अपने छोटे भाइयों का बहुत ध्यान रखते थे।
श्रीराम जब बड़े हुए तो उनका विवाह राजा जनक की पुत्री राजकुमारी सीता से हुआ। श्रीराम पूरे परिवार के साथ एक खुशहाल जीवन बिता रहे थे। तभी, अचानक एक दिन अपने पिता का वचन पूरा करने के लिए, वह अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास चले गए।