दशहरा की कहानी
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।
Story
आज दशहरे की छुट्टी थी, रिया अपने माता-पिता और छोटे भाई नमन के साथ दशहरा के मेले में जाने वाले थे। सुबह से ही रिया और नमन मेला जाने के लिए बहुत उत्साहित थे। रिया यह तो जानती थी कि दशहरा भगवान राम की रावण पर जीत का उत्सव है पर वह इस त्यौहार के बारे में और जानना चाहती थी।
इसलिए, रिया ने पापा से पूछा, “पापा, हम दशहरा क्यों मानते हैं?”
पापा मुस्कुराते हुए बोले, “मुझे खुशी है रिया कि तुमने यह सवाल पूछा। हर त्योहार के पीछे कोई कहानी या सन्देश ज़रूर होता है। कोई भी त्योहार मानने से पहले हमें उससे जुड़ी जानकारियाँ पता होनी चाहिए।
चलो, आज मैं तुम दोनों को दशहरा की कहानी सुनाता हूँ।
कई साल पहले की बात है, भारत में अयोध्या नाम का एक शहर था जिसके राजा थे दशरथ। राजा दशरथ के चार पुत्र थे, राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। चारों भाइयों में राम सबसे बड़े थे।
राम एक आज्ञाकरी पुत्र थे, अपने पिता के वचन का मान रखने के लिए, वह अपनी पत्नी सीता और छोटे भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के लिए वनवास चले गए।
वन में कई तरह की कठिनाइयों का सामना करते हुए वे अपना जीवन बिता रहे थे। तभी एक दिन जब श्रीराम और लक्ष्मण अपनी कुटी में नहीं थे, लंका का दुष्ट राजा रावण, बल से माता सीता को उठाकर अपने नगर लंका ले गया जो समुद्र पार थी।
रावण माता सीता से विवाह करना चाहता था। वह दस सर वाला एक बलवान और अत्याचारी राक्षस था जिसके आतंक से मनुष्य के साथ-साथ देवता भी डरते थे।
श्रीराम ने माता सीता को वापिस लाने और रावण को उसके बुरे कामों की सज़ा देने का प्रण लिया। जब श्रीराम माता-सीता की खोज में निकले तब उनकी भेंट वानर राजा सुग्रीव और उनके मित्र हनुमान से हुई।
सुग्रीव, हनुमान और वानर सेना की मदद से श्रीराम समुद्र पार कर लंका पहुँचे। श्रीराम की सेना और रावण की सेना में दिन तक भीषण युद्ध हुआ और अंत में श्रीराम ने रावण को हराया और माता सीता को लंका से मुक्त किया। रावण के अंत के साथ ही बुराई पर अच्छाई की जीत हुई।
इसलिए, दशहरे के दिन रावण, उसके भाई कुम्भकर्ण और बेटे मेघनाद के पुतलों को जलाया जाता है।
श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता 14 वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या पहुँचे। अयोध्यावासियों ने बड़ी खुशी से उनका स्वागत किया और पूरे नगर में दिए जलाए। इस दिन को हम दिवाली के रूप में मानते हैं।”
दशहरा की कहानी सुनकर रिया और नमन बहुत खुश हुए और बोले, “हम भी भगवान राम की तरह हमेशा सच्चाई और अच्छाई की राह पर चलेंगे।”
शाम को पूरा परिवार मेला देखने पहुँचा। मेले के रौनक देखने लायक थी। तरह-तरह के झूले, खिलौने और स्वादिष्ट खाने की चीज़ें सबका मन लुभा रहीं थीं।
पर मेले की जो चीज़ सबका ध्यान खींच रही थी वो थे रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के तीन विशाल पुतले। रिया और नमन तो टकटकी बाँधे उन्हें देखते ही रह गए। तभी पास के एक दुकान से आती चाट की खुशबु की तरफ़ उनका ध्यान गया। सबने मज़े से चाट खाई।
फिर नमन अपने पिताजी से ऊँचे वाले झूले पर बैठने की ज़िद करने लगा, रिया और नमन ने झूले का मज़ा लिया।
मेले में रामलीला का आयोजन भी किया गया था। सभी कलाकार बेहतरीन तरीके से रामायण के अलग-अलग पात्रों का किरदार निभा रहे थे। रिया और उसके परिवार ने रामलीला का आनंद लिया। रमलीला का समापन रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के पुतलों को जलाकर हुआ। सबने तालियाँ बजाई और बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया।
रिया और नमन खुशी-खुशी अपने माता-पिता के साथ घर को चल दिए।
दशहरा हमें याद दिलाता है कि बुराई और झूठ चाहे कितनी भी विशाल और प्रभावी क्यों ना हो अच्छाई और सच्चाई के सामने उसे झुकना ही पड़ता है।
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Shloka
राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥
स्त्रोत: रामचरितमानस
राम का नाम लिए बिना, परमात्मा (सच्चे लक्ष्य) की प्राप्ति की आशा करना वैसा ही है जैसे बरसते हुए बादलों की बूँद को पकड़कर आकाश में चढ़ने की इच्छा करना।
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Story type: Mythological, Motivational
Age: 7+years; Class: 3+