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कुएँ का मेंढक

यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें नई चीजों का अनुभव करना चाहिए।

कुएँ का मेंढक

Story


लिली, नौ साल की एक प्यारी लड़की थी। वह स्कूल के अलावा और कहीं नहीं जाती थी। उसे घर पर ही रहना अच्छा लगता था, कहीं घूमने जाना या नए लोगों से मिलना उसे पसंद नहीं था। इसी वजह से उसके ज़्यादा दोस्त भी नहीं थे। वह घर पर ही अपने खिलौनों के साथ खेलती या अपने छोटे भाई के साथ गार्डन में खेलती थी।


एक दिन स्कूल में टीचर ने सभी बच्चों से कहा कि कल हम सब जंगल घूमने जाएँगे, वहाँ हम तरह-तरह के पेड़-पौधों और जानवरों के बारे में सीखेंगे, तुम सब अपने माता-पिता से पूछ लेना और ट्रिप में काम आने वाली सभी ज़रूरी चीज़ें ले आना। सभी बच्चे ट्रिप पर जाने के लिए उत्साहित थे पर लिली एक नई जगह पर जाने के नाम से ही परेशान हो गई।


“स्कूल के आसपास ही कितने सारे पेड़ पौधे और जानवर हैं, तो फिर जंगल जाने कि क्या ज़रूरत है, पर मैम को कैसे मना करुँ? अब तो नचिकेता ही मेरी कुछ मदद कर सकता है,” लिली ने सोचा।


तभी लिली ने देखा की उसके डेस्क पर एक मेंढक उछल रहा था। लिली डर कर पीछे हट गई। तभी मेंढक एक लड़के में बदल गया और ज़ोर से हंसने लगा। “नचिकेता तुम! तुमने तो मुझे डरा ही दिया,” लिली ने कहा।


“आज मैं तुम्हें एक मेंढक की कहानी सुनाने वाला हूँ, जो कुछ-कुछ तुम्हारे जैसा ही था,” नचिकेता ने कहा।


एक बार की बात है। एक गाँव में एक पुराना कुआँ था, जिसमें भोला नाम का एक मेंढक रहता था। वह सालों से उस कुएँ में रह रहा था। वो उस कुएँ से कभी बाहर नहीं गया था। उसके लिए वही उसकी पूरी दुनिया थी। अचानक एक दिन, समुद्र में रहने वाला एक मेंढक, कोला, कूदता-फुदकता उसे कुँए में आ गिरा।


“तो क्या तुम्हारा समुद्र इस कुँए जितना बड़ा है,” भोला ने कोला से पूछा।


“लगता है तुम मज़ाक कर रहे हो, समुद्र कुँए से बहुत बड़ा होता है,” कोला बोला।


“मैं नहीं मानता, मेरे कुएँ से बड़ा और कुछ भी नहीं हो सकता,” भोला ने कहा।


“लगता है तुम्हें समुद्र की सैर करानी ही पड़ेगी,” कोला ने कहा और भोला को पकड़कर एक ऊँची छलांग लगाई और दोनों कुँए से बाहर आ गए।


भोला पहली बार कुएँ से बाहर आया था। इतनी रोशनी, हरियाली, रंग-बिरंगे फूल, अनेक प्रकार के पशु-पक्षी को देखकर भोला हैरान रह गया।


कोला उसे अपने साथ समुद्र के किनारे ले गया। इतने बड़े समुद्र को देखकर भोला की आँखे, खुली की खुली रह गईं।


“मैंने आज तक इतना बड़ा समुद्र नहीं देखा। तुम सच कह रहे थे यह तो मेरे कुएँ से बहुत-बहुत ज़्यादा बड़ा है।”


भोला ने फैसला किया किया कि वो अब अपने कुएँ में वापिस नहीं जाएगा बल्कि समुद्र में तैरकर यह पता लगाएगा कि समुद्र कितना अनोखा है।


“तो, लिली, जिस तरह भोला को समझ आ गया कि उसके कुऍं के बाहर भी एक दुनिया है, उसी तरह जब तुम भी अपनी इस छोटी सी दुनिया से बाहर निकलोगी तो जानोगी कि दुनिया कितनी बड़ी और खूबसूरत है और यहाँ जानने और सीखने के लिए कितना कुछ है।


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स्रोत: मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य का एक श्लोक है


या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्य भिधीयते।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


जो भगवान चेतना के रूप में हमारे अंदर हैं उनको प्रणाम है। प्यारे बच्चों, जिस तरह सोनू हिरण खुशबू के स्त्रोत को बाहर ढूंढ रहा था पर उसने उसे अपने अंदर ही पाया, ठीक उसी तरह हम भी भगवान को बाहर ढूंढते हैं जबकि वो हमारे अंदर ही हैं चेतना के रूप में।

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Story type: Adventure, Motivational

Age: 7+years; Class: 3+

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