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यह खुशबू कहाँ से आई?

यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान हमारे अंदर है, लेकिन हम नहीं जानते।

यह खुशबू कहाँ से आई

Story


एक समय की बात है हिमालय के जंगलों में सोनू नाम का एक हिरण रहता था।जहाँ सभी जानवर खाते-पीते, मौज उड़ाते वहीं सोनू हर समय बेचैन होकर इधर-उधर भागता रहता। ना ही उसका घास चरने और हरी-हरी पत्तियाँ खाने में मन लगता और ना ही उसे दोस्तों के साथ खेलने में आनंद आता। वह हर समय किसी चीज़ की तलाश में भटकता रहता। पर उसे वो कभी मिलती नहीं।


नचिकेता, सोनू को परेशान देख खुद भी परेशान हो गया। नचिकेता, सोनू के दोस्त अप्पू हाथी का रूप लेकर उसके पास गया और बोला, “क्या बात है सोनू! जब देखो तुम परेशान होकर इधर-उधर भागते रहते हो। आखिर तुम ढूंढ क्या रहे हो?”


सोनू हताश होकर बोला, “अरे क्या बताऊँ यार! हर समय मुझे एक बहुत अच्छी खुशबू आती है, मुझे पता करना है वो किसकी है। बस इसी खुशबू की खोज में यहाँ से वहाँ से भागता रहता हूँ।”


अप्पू हँसा और बोला, “क्या तुम सचमुच नहीं जानते कि यह खुशबू कहाँ से आती है?”


“नहीं! मैं नहीं जानता,” सोनू बोला।


“तुम कितने भोले हो सोनू जो अपनी ही खूबी से अनजान हो। यह खुशबू, तुम्हारे ही शरीर से आती है। तुम्हारी नाभि में कस्तूरी है, यह उसी की खुशबू है,” अप्पू बोला।


सोनू ने खुश होकर अप्पू का धन्यवाद किया। उसे अब शांति मिल गई थी।


प्यारे बच्चों, जिस तरह सोनू हिरण खुशबू के स्त्रोत को बाहर ढूंढ रहा था पर उसने उसे अपने अंदर ही पाया, ठीक उसी तरह हम भी भगवान को बाहर ढूंढते हैं जबकि वो हमारे अंदर ही हैं चेतना के रूप में।

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स्रोत: मार्कण्डेय पुराण

मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य का एक श्लोक है


या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्य भिधीयते।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


जो भगवान चेतना के रूप में हमारे अंदर हैं उनको प्रणाम है।


प्यारे बच्चों, जिस तरह सोनू हिरण खुशबू के स्त्रोत को बाहर ढूंढ रहा था पर उसने उसे अपने अंदर ही पाया, ठीक उसी तरह हम भी भगवान को बाहर ढूंढते हैं जबकि वो हमारे अंदर ही हैं चेतना के रूप में।

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Story type: Magical, Witty, Mythological

Age: 7+years; Class: 3+

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