राजकुमार जिसने अपना महल छोड़ा
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा सुख धन या आराम से नहीं मिलता, बल्कि दूसरों के प्रति करुणा का भाव रखने और जीवन को समझने से मिलता है।

कहानी
भूमि और आदर्श कुछ समय पहले ही बोधगया से अपनी यात्रा पूरी कर के लौटे थे, वह पवित्र स्थान जहाँ गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, या कह सकते हैं कि उन्होंने अपने सच्चे स्वरूप को जाना था।
बोधगया में उन्होंने महाबोधि मंदिर, बोधि वृक्ष, विशाल बुद्ध प्रतिमा और कई मठों का दर्शन किया। वे ढेर सारी सुंदर यादें और गौतम बुद्ध के बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा के साथ लौटे।
एक शाम जब वे अपनी नानी के साथ अपनी इस रोचक यात्रा के बारे में बातें कर रहे थे, तो भूमि और आदर्श ने बुद्ध के बचपन और उनके बुद्ध बनने की यात्रा के बारे में नानी से बताने के लिए कहा।

नानी मुस्कुराईं और बोलीं, “क्या तुम लोग छोटे राजकुमार सिद्धार्थ की कहानी सुनना चाहोगे, जो बाद में बुद्ध बने?”
“हाँ नानी!” दोनों ने उत्साह से कहा।
“तो सुनो," नानी ने कहानी सुनानी शुरू की, "बहुत समय पहले कपिलवस्तु राज्य में सिद्धार्थ गौतम नामक एक दयालु और विनम्र राजकुमार रहते थे। वह बहुत बुद्धिमान, विनम्र और सभी के प्रिय थे। उनके पिता, राजा शुद्धोधन, उन्हें बहुत प्यार करते थे और हमेशा उन्हें खुश रखना चाहते थे।”
"उनका जीवन महल में कैसा था?" आदर्श ने उत्सुक होकर पूछा।
नानी ने बताया, “उनके पास सब कुछ था — रहने के लिए एक विशाल कमरा, खाने के लिए स्वादिष्ट भोजन, घुमने के लिए सुंदर बाग-बगिचे और खेलने के लिए बहुत सारे खिलौने। राजा ने यह सुनिश्चित किया था कि सिद्धार्थ कभी भी कोई दुखद दृश्य या घटना न देखें। इसलिए वे हमेशा सुंदर चीजों और खुशहाल लोगों से घिरे रहते थे।
जब सिद्धार्थ थोड़े बड़े हुए तो उन्हें महल के बाहर की दुनिया को जानने की इच्छा हुई। एक दिन, मौका पाकर सिद्धार्थ महल से बाहर गए।
पहली बार उन्होंने एक बूढ़े व्यक्ति को देखा, जो मुश्किल से चल पा रहा था। सिद्धार्थ ने पूछा, ‘इन्हें क्या हुआ है?’ उनके मंत्री ने उत्तर दिया, ‘जब लोग बूढ़े होते हैं तो कमजोर हो जाते हैं और ठीक से चल-फिर नहीं पाते।’
फिर उन्होंने एक बीमार व्यक्ति को देखा। सिद्धार्थ ने पूछा, ‘यह व्यक्ति इतनी पीड़ा में क्यों है?’ मंत्री ने बताया, ‘यह बीमार है। बीमारी किसी को भी हो सकती है।’
इसके बाद उन्होंने कुछ लोगों को एक निर्जीव शरीर के पास रोते हुए देखा। सिद्धार्थ ने पूछा, ‘इस व्यक्ति को क्या हुआ है?’
मंत्री ने कहा, ‘इस व्यक्ति की मृत्यु हो गई है।’
भूमि दुखी होकर बोली, “यह सब देखना उनके लिए बहुत कठिन रहा होगा,”।
नानी ने सिर हिलाया, “हाँ, सिद्धार्थ बहुत विचलित हो गए। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन में इतनी पीड़ा और दुख हो सकता है।
"फिर उन्होंने एक शांत भिक्षु को देखा, जो बड़े शांत भाव से चल रहा था। सिद्धार्थ ने सोचा, ‘शायद यह भिक्षु किसी ऐसी चीज की खोज कर रहा है जो दुख से परे हो।’
"उस रात सिद्धार्थ सो नहीं सके। वह सोचते रहे, ‘लोगों को दुख क्यों होता है? क्या इसका कोई अंत है? क्या ऐसा कुछ है जो कभी नहीं बदलता और हमेशा खुश रहता है?’

"आखिरकार, उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया। वह अपने कीमती वस्त्रों, सभी सुख-सुविधाओं और यहाँ तक कि अपने परिवार को भी छोड़कर महल से निकल गए। वे सत्य की खोज में निकल पड़े, ताकि लोगों को दुख से मुक्ति दिला सकें।”
“वह कितने बहादुर थे,” आदर्श ने कहा।

नानी मुस्कुराईं और बोली, “हाँ, उन्होंने जंगलों में घूमकर, कई साधु-संतों से मुलाकात की और अंत में एक वृक्ष के नीचे गहरे ध्यान में बैठ गए। वर्षों की साधना के बाद उन्होंने अपने भीतर ही सभी सवालों के जवाब पाए और बुद्ध बन गए — बुद्ध का मतलब है वह जो जाग गया और जिसने ज्ञान मिल गया है।”
भूमि ने धीरे से कहा, “उन्होंने दूसरों की मदद के लिए सब कुछ त्याग दिया, वह कितने महान थे।”
नानी ने दोनों को गले लगाते हुए कहा, “इसीलिए हम आज भी उन्हें याद करते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं ताकि हम भी ज्ञान प्राप्त कर सकें, अपने सच्चे स्वरूप को जान सकें, दुख से मुक्त हो सकें और सभी में शांति तथा आनंद बाँट सकें।”
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Shloka
अधिगम्य ततो विवेकजं तु परम प्रीति सुखं मनः समाधिम् ।
इदमेव ततः परं प्रदध्यौ मनसा लोक गतिं निशम्य सम्यक् ॥
स्रोत: बुद्धचरित (सद्धर्मपुण्डरीक)
गौतम बुद्ध ने जब गहरे चिंतन से मिलने वाले महानतम सुख का अनुभव किया, तो उन्होंने ध्यान के बारे में सोचा।
उन्होंने अपने मन में पूरी तरह समझ लिया कि यह संसार कैसे चलता है और हमारे चारों ओर सब कुछ एक निश्चित नियम के अनुसार कैसे घटित होता है।
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Story type: Spiritual
Age: 7+years; Class: 3+
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