सच का दर्पण
यह कहानी हमें सिखाती है कि हम सब एक ही संपूर्ण सत्य का हिस्सा हैं, और एक ही नित्य और अनंत चेतना से जुड़े हुए हैं।

कहानी
आरती, नौ साल की एक लड़की, अपने कमरे में बैठी हुई थी। उसके चेहरे पर उलझन दिखाई दे रही थी।उसकी दादी कमरे में आईं और देखा कि आरती परेशान लग रही है।
दादी ने पूछा, “आरती, तुम इतनी परेशान क्यों दिख रही हो?”
“दादी,” आरती ने कहा, “आज मेरी टीचर ने बताया कि सब कुछ ए क दूसरे से जुड़ा हुआ है और हम सब ब्रह्म नाम की किसी चीज़ का हिस्सा हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ब्रह्म चेतना है, लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा। मैं ब्रह्म से कैसे जुड़ी हुई हूँ? मुझे तो लगता है कि मैं बस 'आरती' हूँ!”
दादी मुस्कुराईं। “यह तो बहुत अच्छा सवाल है, आरती! आओ, मैं इसे एक छोटे से खेल से समझाती हूँ ।मेरे कमरे से एक दर्पण ले आओ।”

आरती दौड़कर अंदर गई और एक चमकता हुआ आईना ले आई।
“अब,” दादी ने कहा, “इस आईने को अपने चेहरे के सामने रखो। तुम्हें क्या दिख रहा ह ै?”
“मुझे मेरा चेहरा दिख रहा है!” आरती हस्ते हुए बोली।
“अच्छा। अब इसे उस पेड़ की तरफ करो। अब क्या दिख रहा है?”
“मुझे पेड़ दिख रहा है!” आरती ने पेड़ की परछाई की तरफ इशारा करते हुए कहा।
दादी ने सिर हिलाया। “और अगर इसे आकाश की तरफ करो तो?”
“मुझे बादल दिख रहे हैं!” आरती खुशी से बोली।
“बिलकुल सही,” दादी ने कहा। “अब बताओ, क्या यह दर्पण तुममें, पेड़ या बादलों में बदल गया?”
आरती ने सिर हिलाया। “नहीं, दादी। दर्पण तो बस दर्पण ही है।”
“सही कहा,” दादी बोलीं। “दर्पण जो भी उसके सामने होता है, उसे दिखाता है, लेकिन वह उन चीजों में बदलता नहीं है। वह वही रहता है। चेतना भी ठीक इसी तरह काम करती है।”
आरती ने अपना सिर थोड़ा झुकाया। “चेतना? वो क्या होती है?”
दादी फिर से मुस्कुराईं। “चेतना दर्पण की तरह है। यह तुम्हारे अंदर की वह समझ है, जो तुम्हें देखने, सुनने और सोचने में मदद करती है। जैसे दर्पण दुनिया को दिखाता है, वैसे ही चेतना हर चीज़ को दर्शाती है—तुम्हारे विचार, भावनाएँ और तुम्हारे आस-पास की दुनिया। लेकिन यह कभी बदलती नहीं, यह हमेशा रहती है।”
आरती ने थोड़ा सोचा। “तो, मेरी चेतना मेरे अंदर एक दर्पण की तरह है?”
“हाँ,” दादी ने कहा। “और एक अद्भुत बात, वही चेतना हर किसी और हर चीज़ के अंदर भी है। यह सिर्फ ‘तुम्हारी’ चेतना या ‘मेरी’ चेतना नहीं है। यह हम सब में एक जैसी है। यही ब्रह्म या भगवान है—एक बड़ी, अनंत चेतना जो सबको जोड़ती है।”
आरती की आँखें बड़ी हो गईं। “वाह! तो मैं दर्पण की तरह हूँ, और जो कुछ भी मैं देखती हूँ, वह ब्रह्म का हिस्सा है?”
“बिल्कुल,” दादी ने कहा। “जब तुम यह समझती हो, तो तुम्हें एहसास होता है कि तुम सिर्फ आरती नहीं हो। तुम पेड़, बादल, और यहाँ तक कि मुझमें भी हो! हम सब अनंत चेतना, जिसे ब्रह्म कहते हैं, से जुड़े हुए हैं।”
आरती मुस्कुराई। “यह तो बहुत मज़ेदार है, दादी। यह ऐसा है जैसे हम सब एक बड़े, चमकदार आईने में अलग- अलग प्रतिबिंब हैं!”
दादी ने आरती के सिर पर प्यार से हाथ फेरा। “तुमने बिलकुल सही समझा, मेरी बच्ची। यही वह ज्ञान है, जब ऋषियों ने कहा, ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’—चेतना ही ब्रह्म है।”
और इस तरह, आरती ने एक नई तरह की खुशी महसूस की, यह जानकर कि वह कुछ बड़ा और सुंदर ब्रह्म का हिस्सा है।
जैसे दर्पण हर चीज़ को बिना बदले दिखाता है, वैसे ही चेतना हमारे सभी अनुभवों को दर्शाती है, लेकिन खुद कभी नहीं बदलती।
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श्लोक
प्रज्ञानं ब्रह्म
Pragyanam Brahma
स्रोत: महावाक्य (महान वाक्य) - ऐतरेय उपनिषद्, ऋग्वेद
अर्थ
अंतिम सत्य शुद्ध चेतना है, जो सभी ज्ञान और समझ का स्रोत है।
यह श्लोक यह बताता है कि ब्रह्म (ईश्वर) शुद्ध चेतना के रूप में है, जो हमारे समस्त ज्ञान और समझ का मूल है।
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Story type: Spiritual
Age: 7+years; Class: 3+
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