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श्वेतकेतु की कहानी

यह कहानी हमें सिखाती है कि संसार की हर चीज़ में भगवान है, हम उन्हें देख नहीं सकते पर हर चीज़ में उन्हें महसूस कर सकते हैं।

श्वेतकेतु की कहानी

Story


एक समय की बात है उद्दालक नाम के एक महान ऋषि थे। उनका 12 साल का एक बेटा था, श्वेतकेतु। श्वेतकेतु अपना ज़्यादातर समय दोस्तों के साथ खेलने और मस्ती करने में बिताता था। उसके पिताजी को उसकी शिक्षा की बहुत चिंता थी इसलिए उन्होंने श्वेतकेतु को एक अच्छे और योग्य गुरु के पास शिक्षा लेने के लिए भेज दिया।


कुछ समय पश्चात श्वेतकेतु अपनी शिक्षा पूरी करके अपने घर वापस लौट आया। उसके पिताजी को यह महसूस हुआ कि श्वेतकेतु को अपने ज्ञान का बहुत घमंड हो गया है। वह जानते थे कि इतना अहंकार उसके लिए ठीक नहीं है, यह उसे जीवन के सच तक नहीं पहुँचने देगा।


उसे समझाने के लिए एक दिन "उन्होंने ने उसे अपने पास बुलाया और पूछा, “बेटा, क्या तुम्हें वह ज्ञान मिला है जिससे न सुनाई देने वाला भी सुनाई दे, न सोचे जाने वाला भी सोचा जाए और जिसे नहीं जाना जा सकता उसे भी जाना जा सके।”


श्वेतकेतु के पास अपने पिताजी के इन सवालों का जवाब नहीं था। उसके पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा, “इस मिट्टी को देखो, जब कुम्हार इससे घड़ा बनाता है तो इसका रूप और आकार बदल जाता है पर असल में वो घड़ा होता तो मिट्टी ही है। इसी तरह इस संसार की सारी चीज़े उसी एक भगवान के अलग-अलग रूप, रंग और आकार हैं। सबके मूल में वही एक भगवान हैं। जिस तरह मिट्टी के बिना घड़ा नहीं हो सकता उसी तरह भगवान के बिना ना तो यह संसार हो सकता है और ना ही इस संसार की कोई चीज़। तुम भी भगवान का ही एक रूप हो, श्वेतकेतु। (ऋषि उद्दालक ने श्वेतकेतु से कहा कि मिट्टी के ढेले के बारे में जानकर हम उससे बनी हर चीज़ के बारे में जान सकते हैं क्योंकि मिट्टी से बनी हर चीज़ का मूल तो मिट्टी ही है, बच्चों को यह बात समझाने के लिए हमने इस कथन में कुछ बदलाव किए हैं।)


श्वेतकेतु उनकी बात समझ गया पर वो चाहता था कि पिताजी यह साबित करें कि हर चीज़ में भगवान है। पिताजी ने उसे बरगद के पेड़ का एक फल दिया और उसे काटने को कहा। श्वेतकेतु ने ऐसा ही किया।

पिताजी ने उससे पूछा, “फल के अंदर क्या है?”


इसमें बीज है पिताजी, श्वेतकेतु ने कहा।


फिर पिताजी ने कहा, “अब इस बीज को काटकर देखो इसमें क्या है?”


“इसमें तो कुछ भी नहीं है पिताजी,” श्वेतकेतु ने कहा।


“जिसे तुम नहीं देख पा रहे हो वही शक्ति (भगवान) एक बड़ा सा बरगद का पेड़ बनेगा,” पिताजी बोले।

अपनी बात साबित करने के लिए पिताजी ने उसे एक और उदाहरण दिया। उन्होंने श्वेतकेतु को पानी से भरे एक बर्तन में थोड़ा नमक डाल कर मिलाने को कहा। फिर पिताजी ने श्वेतकेतु से पूछा, “क्या तुम पानी में नमक देख सकते हो?”


“नहीं पिताजी,” श्वेतकेतु ने कहा।


“पर नमक का खारापन पानी की हर बूँद में है। ठीक इसी तरह संसार की हर छोटी से बड़ी चीज़ में भगवान हैं। वो मुझमे भी हैं और तुममे भी हैं श्वेतकेतु।

श्वेतकेतु ने अपने पिताजी की शिक्षा के गहरे सत्य को समझते हुए यह अनुभव किया कि भगवान सभी चीजों में हैं, खुद उसके अंदर भी।

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स्रोत: छान्दोग्य उपनिषद्


छान्दोग्य उपनिषद् के इस श्लोक में यही बात कही गई है।


सर्वं खल्विदं ब्रह्म


हर जगह भगवान हैं। संसार की हर चीज़ में भगवान है, हम उन्हें देख नहीं सकते पर हर चीज़ में उन्हें महसूस कर सकते हैं।

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Story type: Motivational, Mythological

Age: 9+years; Class: 4+

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