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भगवान को क्या खुश करता है?

यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान बहुत कम में भी प्रसन्न हो जाते हैं।

भगवान को क्या खुश करता है

Story


सात साल के रोहन का कमरा हर तरह के खिलौनों से भरा हुआ था फिर भी वह हमेशा अपने मम्मी-पापा से नए खिलौने के लिए ज़िद्द करता। एक बार तो वह अपने ही खिलौनों से टकरा गया और उसे गहरी चोट लग गई। फिर भी रोहन की नए खिलौने पाने की इच्छा बढ़ती ही जा रही थी। उसके मम्मी-पापा रोहन की इस आदत से बहुत परेशान थे। रोहन का दोस्त नचिकेता, रोहन के मम्मी-पापा की परेशानी दूर करना चाहता था।


“रोहन को समझाना बहुत ज़रूरी है,” उसके दोस्त नचिकेता ने सोचा।


किसी ने रोहन के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। रोहन ने दरवाज़ा खोलकर देखा तो वहाँ एक बड़ा सा टैडी-बेयर खड़ा था।


“वाह! एक और खिलौना, मैं इसे अपने कमरे में रखूँगा,” रोहन खुशी से बोला। उसका कमरा पहले ही खिलौनों से भरा हुआ था, इतने बड़े टैडी के लिए तो कमरे में जगह ही नहीं थी। रोहन सोच में पड़ गया कि वो अब क्या करे! तभी टैडी एक लड़के में बदल गया।


“नचिकेता तुम? टैडी कहाँ गया?” रोहन ने हैरान होकर कहा।


“तुम्हारे पास तो पहले से ही इतने सारे खिलौने हैं, तुम्हें एक और खिलौना क्यों चाहिए,” नचिकेता ने पूछा।


“ये खिलौने तो बहुत कम हैं, मुझे और बहुत सारे खिलौने चाहिए,” रोहन ने कहा।


नचिकेता रोहन की बात सुनकर मुस्कुराया और बोला, “चलो तुम्हें एक अच्छी-सी कहानी सुनाता हूँ… यह कहानी महाभारत से है।“


जब पांडव वनवास में थे तब ऋषि दुर्वासा अपने शिष्यों के साथ उनकी कुटिया में पहुँचे।

ऋषि दुर्वासा, पांडवों के बड़े भाई युधिष्ठिर से बोले, “पहले हम नदी में स्नान करेंगे फिर भोजन करेंगे।”


युधिष्ठिर ने यह बात अपनी पत्नी द्रौपदी से कही। द्रौपदी चिंतित होकर बोली, “पर खाना तो खत्म हो गया है! हम उन्हें क्या खिलाएंगे? अब तो कृष्ण ही हमारी मदद कर सकते हैं।”


द्रौपदी ने कृष्ण को अपनी सारी परेशानी बताई। कृष्ण ने द्रौपदी को खाने का बर्तन लाने के लिए कहा। बर्तन में चावल का बस एक ही दाना बचा था। कृष्ण ने वो एक चावल का दाना खा लिया।


कृष्ण के दाना खाते ही एक चमत्कार हुआ! ऋषि दुर्वासा और उनके सभी शिष्यों की भूख अपने-आप ही शांत हो गई और वह अपने शिष्यों के साथ वहाँ से चले गए।

“तो रोहन देखा तुमने कैसे भगवान केवल एक चावल के दाने से संतुष्ट हो गए और उन्होंने ऋषि दुर्वासा और उनके शिष्यों की भी भूख मिटा दी। इसी तरह हमें भी हमारे पास जो है, उसमें संतुष्ट और खुश रहना चाहिए। “ नचिकेता ने रोहन को समझाया।


“मैं तुम्हारी बात समझ गया, नचिकेता। अब मैं और खिलौनों के लिए ज़िद्द नहीं करूँगा और दूसरे बच्चों के साथ भी अपने खिलौने बाँटूंगा।”

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स्रोत: भगवद् गीता


भगवद् गीता में कृष्ण कहते हैं


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति |

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन: ||


अगर कोई भक्ति भाव से मुझे एक पत्ता, एक फूल, एक फल या केवल पानी भी देगा तो मैं उसे स्वीकार करूँगा। जैसे भगवान थोड़े में खुश हो जाते हैं वैसे ही हमें भी कम में खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि लालच/इच्छा का कोई अंत नहीं।

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Story type: Mythological, Motivational

Age: 6+years; Class: 2+

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