राम भरत मिलाप : नि:स्वार्थ प्रेम की कहानी
यह कहानी हमें परिवार के प्रेम और एकता का महत्व सिखाती है और साथ ही धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
Story
शशि और रवि दो भाई थे, जिनका स्वभाव बिल्कुल अलग था। रवि शशि से बड़ा था, पर वे हमेशा हर बात पर झगड़ते और बहस करते रहते थे। वे पार्क में खेलते समय, खाने की मेज पर, पढ़ते समय, और यहां तक कि सोने से पहले भी अक्सर झगड़ते रहते थे।
एक दिन उनकी दादी माँ उनसे मिलने आईं। उन्होंने उनका बर्ताव दादी माँ ने देखकर दोनों को अपने कमरे में बुलाया। दादी माँ ने उनसे पूछा, "क्या तुम जानते हो कि भगवान राम कौन हैं?"
शशि ने जल्दी से जवाब दिया, "हाँ, वो हमारे भगवान हैं जिनकी हम पूजा करते हैं। वे अयोध्या के राजकुमार थे और उन्होंने रावण को एक युद्ध हराकर अपनी पत्नी सीता को छुड़ाया था।"
दादी माँ ने कहा, "तुम सही कह रहे हो, लेकिन क्या तुम जानते हो कि उनकी पूजा उनके अच्छे व्यवहार, सच से प्रेम और आज्ञापालन और दयालुता के लिए भी की जाती है?"
फिर उन्होंने पूछा, "और क्या तुम जानते हो कि भरत कौन हैं?"
इस बार रवि ने जवाब दिया, "हाँ, भरत भगवान राम के छोटे भाई थे।"
दादी माँ ने कहा, "रवि, सिर्फ इतना ही नहीं। भरत केवल रामजी के भाई ही नहीं, बल्कि उनके सच्चे भक्त भी थे। उनके अपने बड़े भाई के लिए उनका प्रेम और आदर ने उन्हें एक आदर्श छोटा भाई बनाता है। चलो, मैं तुम्हें उनकी कहानी सुनाती हूँ।
राजा दशरथ, भगवान राम, लक्ष्मण और भरत के पिता थे, उन्होंने अपनी सबसे छोटी पत्नी कैकेयी को दो वचन दिए थे। जब राजा दशरथ भगवान राम को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने जा रहे थे, तब कैकेयी ने अपने इन वचनों का इस्तेमाल किया। कैकेयी चाहती थी कि उनके पुत्र भरत को राजा बनाया जाए और भगवान राम को चौदह वर्षों के लिए वनवास भेज दिया जाए। राजा दशरथ ने कैकेयी से किए अपने वचन को निभाने के लिए उसकी बात मान ली।
भगवान राम आज्ञाकारी पुत्र होने के नाते अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए अयोध्या छोड़कर वनवास के लिए चले गए। लक्ष्मण और देवी सीता भी उनके साथ वन में रहने के लिए गए। भरत, जो उस समय किसी अन्य नगर में थे, इस घटना से अनजान थे। जब वह अयोध्या लौटे और उन्हें यह सब पता चला, तो वे बहुत दुखी हुए। भरत ने सिंहासन पर बैठने से इनकार कर दिया क्योंकि वे मानते थे कि उनके बड़े भाई राम ही अयोध्या के राजा बनने के काबिल हैं।
भरत ने भगवान राम को वापस लाने का फैसला किया और उन्हें मनाने के लिए वन में गए ताकि भगवान राम अयोध्या लौटकर राजा बनें।
जब भरत ने वन में भगवान राम से मिले तो भावुक होकर उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों भाइयों ने प्रेम और आदर से एक-दूसरे को गले लगाया। भरत ने विनम्रता से भगवान राम से अयोध्या लौटने की प्रार्थना की, लेकिन रामजी ने बड़े प्रेम से मना कर दिया। श्रीराम के लिए अपना कर्तव्य पालन और अपने पिता के वचन का मान रखना सबसे ज़रूरी था।
इस पूरे प्रसंग को राम-भरत मिलाप के नाम से जाना जाता है, जो दोनों भाइयों के लिए अत्यंत भावुक क्षण था। दोनों भाइयों के मन में एक दूसरे के लिए गहरा प्रेम ,आदर और समर्पण का भाव था।
अयोध्या लौटते समय, भरत ने भगवान राम की चरण पादुकाएँ अपने साथ लीं और उन्हें रामजी के प्रतीक के रूप में अयोध्या के सिंहासन पर स्थापित किया और रामजी का वनवास पूरा होने तक खुद एक संरक्षक के रूप में कार्य किया।"
दादी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, "तो बच्चों, इस कहानी से तुम्हें क्या सीख मिली?"
रवि और शशि ने एक-दूसरे की ओर प्रेम और आदर से देखा। वे समझ गए कि दादी माँ क्या कहना चाह रही थीं। दोनों ने एक साथ कहा, "माफ़ करना दादी माँ। हमें अपने व्यवहार के लिए बहुत खेद है। हम भगवान राम और भरत के दिखाए रस्ते पर चलने की कोशिश करेंगे और एक-दूसरे प्यार और आदर का बर्ताव करेंगे।"
दादी माँ ने मुस्कुराते हुए उन्हें गले लगा लिया। उन्होंने कहा, "हमेशा याद रखना कि परिवार का प्रेम, आदर और एकता बहुत महत्वपूर्ण हैं। तुम्हें हमेशा अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए, भगवान राम की तरह।"
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स्त्रोत : रामचरितमानस
परे भूमि नहिं उठत उठाए। बर करि कृपासिंधु उर लाए॥
स्यामल गात रोम भए ठाढ़े। नव राजीव नयन जल बाढ़े
यह श्लोक भगवान राम और भरत के बीच गहरे प्रेम और आदर को दर्शाता है, जो यह स्पष्ट करता है कि विनम्रता और करुणा कैसे परिवारिक संबंधों को मजबूत करते हैं।
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Story type: Religious, Motivational
Age: 7+years; Class: 3+