क्या कबीर को लड्डू मिला?
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची खुशी कैसे पाई जाए।

Story
भोपाल में रहने वाले दस साल के करन और कबीर जुड़वा भाई थे। जुड़वा होने के बाद भी दोनों भाइयों का स्वभाव बहुत अलग था। ‘करन’ शांत और खुशमिजाज़ था पर ‘कबीर’ हर छोटी-छोटी बात पर शिकायत करता और हमेशा चिढ़ा रहता।
उनकी माँ दोनों को हमेशा एक जैसे कपड़े और खिलौने दिलाती। पर कबीर कभी-भी खुश नहीं होता, उसे लगता कि करन की चीज़े उससे बेहतर हैं।
आज स्कूल में सरस्वती पूजा थी। पूजा के बाद सभी बच्चों को लड्डू मिलने वाले थे।
कबीर से तो इंतज़ार ही नहीं हो पा रहा था। उसके पेट में तो हाथी-घोड़े सब कूदने लगे थे। पर यह क्या! कबीर की बारी आने से पहले ही सारे लड्डू खत्म हो गए!
उसका मोतीचूर के लड्डू खाने का सपना तो जैसे चूर-चूर हो गया। कबीर उदास होकर रोने लगा। करन अपने भाई को रोता नहीं देख पाया। उसने कबीर से कहा, “यह लो तुम मेरा लड्डू ले लो।”
कबीर ने झट से करन के हाथ से लड्डू ले लिया, जैसे ही वो लड्डू खाने वाला था उसे एहसास हुआ कि करन बिलकुल भी उ दास नहीं है और अभी भी मुस्कुरा रहा है।
कबीर ने करन से पूछा, “तुम्हें बुरा नहीं लग रहा कि तुम्हें लड्डू खाने को नहीं मिला? तुम अभी भी इतने खुश कैसे हो?”
कबीर ने कहा, “ज़रा सरस्वती माँ की मूर्ति को देखो, उनके चहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है। अगर हम उन्हें मिठाइयाँ या सुंदर कपड़े ना भेंट करें तो क्या वो दुखी हो जाएंगी, नहीं ना। इसलिए जीवन में हमें जो भी मिले हमें उसमें खुश रहना चाहिए बिलकुल भगवान की तरह।”
कबीर, करन की बात समझ गया और उसने लड्डू करन को वापस कर दिया। करन ने आधा लड्डू कबीर को दिया।
For more such stories buy myNachiketa Books
स्रोत: छान्दोग्य उपनिषद
यो वै भूमा तत्सुखं नाल्पे सुखमस्ति
जो हमेशा रहता है वही परम आनंद है। जो थोड़े समय के लिए है वो आनंद नहीं है।
कोई चीज़ हमें सच्ची नहीं खुशी नहीं दे सकती, क्योंकि असली खुशी संतोष में है।
Download the Activity Related to Story
Story Video
Watch this Video to know more about the topic
Story type: Witty, Motivational
Age: 7+years; Class: 3+