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लाल देद लल्लेश्वरी

यह कहानी हमें सिखाती है कि चुनौतियों को पार कर के ही भगवान को पाया जा सकता है।

लाल देद ललेश्वरी

Story


लाल देद का जन्म 14वीं सदी में कश्मीर के एक गाँव में हुआ था। वह एक शिवभक्त थीं, उन्होंने कश्मीरी भाषा में कई कविताएँ लिखीं। उनकी कविताओं को वाख कहा जाता है। 


शिवभक्ति और ज्ञान के प्रति प्रेम के कारण लाल देद ने सांसारिक जीवन को छोड़कर, अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की। उनकी यह यात्रा कई कठिनाईयों और चुनौतियों से भरी हुई थी पर उन्होंने हर मुश्किल का डट कर सामना किया।


लाल देद ने छब्बीस साल की उम्र में संत श्रीकंठ महाराज जी से दीक्षा ली। 


लाल देद की कविताओं ने लोगों को धर्म और जाति से ऊपर उठकर भगवान की सच्ची भक्ति करने की सीख दी। उन्होंने भगवान को बाहर ढूँढने के बजाय अपने अंदर ढूँढने की प्रेरणा दी।


वह धर्म के नाम पर किए जाने वाले रीती-रिवाज़ो को नहीं मानती थीं और भगवान की लिए भक्ति और प्रेम को ही सबसे बड़ा मानती थीं। 


लाल देद अपने एक वाख में कहती हैं :


‘मैंने अपने गुरु से सिर्फ

एक ही पाठ सीखा है,

कि बाहर से भीतर की ओर देखो.

आत्म साक्षात्कार का पाठ..’


उन्होंने अपनी कविताओं में सरल भाषा में भगवान और सच से जुड़ी गहरी बातों को आम लोगों तक पहुँचाया है। उनकी कविताओं से यह पता चलता है कि भगवान तक पहुँचने का रास्ता कठिनाइयों वाला है पर इन चुनौतियों को पार कर के ही भगवान को पाया जा सकता है।

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Story type: Motivational

Age: 7+years; Class: 3+

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