वाक्देवी
यह कहानी हमें सिखाती है कि हम और भगवान एक ही हैं।
Story
बहुत पुराने समय की बात है अम्भृणा नाम के एक ऋषि थे जिनकी बहुत ही विद्वान बेटी थी वाक्देवी। उन्हें वागम्भृणी नाम से भी जाना जाता है।
बचपन से ही वाक्देवी को शिक्षा की बहुत इच्छा थी और वे अपने पिता से वेदों और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त करती थीं। वाक्देवी को शब्दों और भाषाओं का बहुत शौक था। वह अक्सर अकेले बैठकर ध्यान करती थीं और गहराई से विचार करती थीं।
उन्होंने देवीमाँ की प्रशंसा में भजन लिखा था, जिसे "देवी सूक्त" या "वाक सूक्त" कहा जाता है। हिन्दू धर्म की सबसे प्राचीन किताब ऋग्वेद में यह भजन शामिल है।
वाक्देवी ने कड़ी साधना और ध्यान से वह ज्ञान पाया जिससे वह खुद को और भगवान को एक समझने लगीं।
इस ज्ञान को पाने के बाद उन्होंने देवी सूक्त की रचना की जिसमें वह खुद को देवी के साथ एक महसूस करती हैं। इस भजन से यह लगता है की भजन गाने वाला (ऋषिका वाक्देवी) और जिसकी प्रसंशा में भजन गया जा रहा है (देवीमाँ) वह दो नहीं बल्कि एक हैं। आज भी कई मंदिरों में देवी की पूजा करते समय देवी सूक्त गया जाता है।
वाक्देवी की भक्ति, ध्यान, और साधना ने उन्हें एक अद्वितीय विदुषी बना दिया। उनकी रचनाएँ और शिक्षा आज भी कई लोगों के लिए मार्गदर्शक हैं।
उनकी भक्ति और मेहनत से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चा ज्ञान हमारे अंदर छिपा होता है, और हमें इसे खोजने के लिए अपने दिल की गहराई में देखना चाहिए।
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Story type: Motivational
Age: 7+years; Class: 3+