पेड़ पर भूत
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी भी बात पर विश्वास करने से पहले उसका प्रमाण ढूंढ़ना चाहिए।
Story
इस बार की गर्मियों की छुट्टियों में कुमार अपने माता-पिता और छोटी बहन साक्षी के साथ अपने दादा-दादी से मिलने उनके गाँव गया। शहर की भीड़-भाड़ और प्रदूषण से दूर, गाँव की हरियाली, साफ हवा और शांति, कुमार को बहुत अच्छी लग रही थी।
गाँव के कई बच्चे - मोहन, भोलू और मीना, कुमार के बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। कुमार उन्हें शहर की बातें बताता था, वह उन्हें मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप इस्तेमाल करना भी सिखाता था। गाँव के बच्चे, कुमार और साक्षी को गाँव के मज़ेदार किस्से सुनाया करते। जिन्हें सुनकर कुमार और साक्षी कभी खूब हँसते तो कभी हैरान रह जाते।
इसी तरह एक दिन, बातों-बातो में भूत की बात निकल आई। “भूत-वूत कुछ नहीं होता,” कुमार ने कहा। “नहीं-नहीं, होता है, हमने अपने बड़ों से भूत की बहुत सी बातें सुनी हैं”, भोलू बड़ी-बड़ी आँखे कर के बोला।
“मैं सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करता। जब-तक मैं भूत को अपनी आँखों से ना देख लूँ, मैं नहीं मानूंगा कि भूत होते हैं, कुमार ने गंभीर होकर कहा।
“मेरी माँ कहती है कि तालाब के पास वाले जामुन के पेड़ पर एक भूत रहता है, रात को उस पेड़ से अजीब-अजीब आवाज़ें आती हैं,” मीना डरते हुए बोली।
“ऐसी बात है, तो आज रात मैं उस पेड़ पर चढ़ूँगा और भूत को पकड़ लूँगा,” कुमार ने निडर होकर कहा।
“क्या तुम्हें डर नहीं लगेगा”, मोहन ने पूछा।
“नहीं, मैं किसी चीज़ से नहीं डरता,” कुमार ने कहा।
अगली सुबह, सभी बच्चे पेड़ के नीचे जमा हो गए। बच्चों ने कुमार को पेड़ से नीचे उतरते हुए देखा। उसके हाथ में गिलहरी के तीन छोटे बच्चे थे।
“ये देखो यह रहा तुम्हारा भूत, कुमार ने बच्चों को चिढ़ाते हुए कहा।
“अरे! ये तो सिर्फ मासूम गिलहरियाँ हैं,” सारे बच्चे ज़ोर से हँसे।
“इसलिए, मैं तुम सब से कहता हूँ कि बिना सोचे समझे किसी बात पर विश्वास मत किया करो, और हर मुश्किल का सामना निडर होकर किया करो,” कुमार ने बच्चों को समझाते हुए कहा।
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स्रोत: विवेकानन्द के बचपन की कहानी
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Story type: Witty, Motivational
Age: 6+years; Class: 2+