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गीता के श्लोक (Gita quotes)

Updated: Jul 22


गीता के श्लोक

बच्चों के लिए 5 शिक्षाप्रद गीता के श्लोक, प्रत्येक एक सरल अर्थ और एक प्रभावी संदेश के साथ। गीता के श्लोक राजकुमार अर्जुन और उनके सारथी, भगवान कृष्ण के बीच का एक शिक्षा से भरा संवाद है। यह एक बड़ी कथा महाभारत का हिस्सा है।



कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।  मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

श्लोक 1 (Gita Quote 1)

(अध्याय 2, गीता श्लोक 47)


कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥


अर्थ

इस गीता के श्लोक में कृष्ण कहते हैं कि हमारा अधिकार केवल अपने कर्मों पर है, उनके परिणामों पर नहीं। हमें अपने कर्मों के परिणाम को अपना लक्ष्य नहीं बनाना चाहिए और कर्म ना करना हमारा चुनाव नहीं होना चाहिए।


संदेश

बच्चों, हमें हमेशा अच्छे काम करने चाहिए, लेकिन बदले में किसी उपहार की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। अच्छे काम केवल इसलिए करना चाहिए क्योंकी यह सही काम है। अगर आप अपने मित्र की पढ़ाई में मदद करते हैं, तो बदले में कोई उपहार नहीं माँगना चाहिए।

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।  मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

श्लोक 2 (Gita Quote 2)

(अध्याय 9, गीता श्लोक 26)


पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥


अर्थ

इस गीता के श्लोक में कृष्ण कहते हैं - "यदि कोई मुझे प्रेमपूर्वक एक पत्ता, एक फूल, एक फल, या जल भी अर्पित करता है, तो मैं उसे स्वीकार कर लेता हूँ।"


संदेश

बच्चों, याद रखें कि हमारे कार्यों में जो प्रेम और प्रयास होता है, वही वास्तव में महत्वपूर्ण होता है। दिल से किए गए छोटे-छोटे काम भी बड़ा असर डाल सकते हैं। अगर आप अपने दोस्त को महँगा उपहार नहीं दे सकते, तो भी आपके हाथों से बना एक प्यार भरा कार्ड, आपके दोस्त के लिए बहुत कीमती होगा।


 
इस श्लोक के बारे में और अधिक जानने के लिए यह वीडियो देखें।

 

पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।  नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च॥

श्लोक 3 (Gita Quote 3)

(अध्याय 11, गीता श्लोक 5)


पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।

नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च॥


अर्थ

इस गीता के श्लोक में कृष्ण अर्जुन से कहते हैं - "देखो अर्जुन (पार्थ), मेरे सैकड़ों और हजारों अलग-अलग रूप।"


संदेश

बच्चों, जैसे कि बड़ा सा क्रेयॉन का डिब्बा अनेक रंगों से भरा होता है, ठीक उसी तरह दुनिया अनगिनत अनोखे नज़ारों से भरी है और हमें जिज्ञासा से इन अलग-अलग नज़ारों को देखकर उसमें रुचि लेनी चाहिए।

 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।  अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

श्लोक 4 (Gita Quote 4)

(अध्याय 4, गीता श्लोक 4)


यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

अर्थ

इस गीता के श्लोक में कृष्ण कहते हैं कि जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब हे भरत, उस समय मैं स्वयं प्रकट होता हूँ।


संदेश

बच्चों, जब भी कोई समस्या हो या हमारा काम सही तरीके से ना हो तब भगवान हमारी मदद करेंगे और सब ठीक करेंगे, वह सच्चाई और अच्छाई को वापिस लाएँगे। कभी-कभी हमें मेहनत करने के बाद भी अच्छा परिणाम नहीं मिलता। उस समय, हमें इस विश्वास के साथ मेहनत करते रहना चाहिए कि भगवान हमारी मदद ज़रूर करेंगे।

इन गीता के श्लोकों को और गहराई से समझने के लिए, हमारी विशेष पुस्तक पढ़ें।

 

कर्म कुवमन्ति सङ्गं त्यक्त्वा आत्मा शुद्धये

श्लोक 5 (Gita Quote 5)

(अध्याय 5, गीता श्लोक 11)


कर्म कुवमन्ति सङ्गं त्यक्त्वा आत्मा शुद्धये


अर्थ

इस गीता के श्लोक में कृष्ण कहते हैं कि कर्म योगी अपना कर्म कर के ही आनन्द पाते हैं। उन्हें किसी तरह के कर्मफल की इच्छा नहीं होती।



संदेश

बच्चों, हमें अपने काम को अच्छे तरीके से करने पर ध्यान देना चाहिए और परिणामों में ज़्यादा रूचि नहीं रखनी चाहिए। जैसे जब आप किसी चित्र में रंग भरते हैं, तो आप ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि आपको इसमें मज़ा आता है, ना कि आप इसके बदले कोई इनाम चाहते हैं।

 

बच्चों, क्या आप जानते हैं?


गीता में कितने श्लोक हैं?

उत्तर: भगवद गीता में कुल 700 श्लोक हैं। श्री कृष्ण ने 574 श्लोक, अर्जुन ने 84 श्लोक, धृतराष्ट्र ने 1 श्लोक और संजय ने 41 श्लोक कहे हैं।


गीता का पहला श्लोक कौन सा है?

उत्तर: धृतराष्ट्र उवाच |

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय ||1||


अर्थ : धृतराष्ट्र ने कहा - हे संजय! कुरुक्षेत्र की पवित्र भूमि पर युद्ध करने की इच्छा से एकत्रित होने के बाद, मेरे और पाण्डु पुत्रों ने क्या किया?


गीता का अंतिम श्लोक कौन सा है?

उत्तर: यह अध्याय18 से है, श्लोक 78 ।

यत्र योगेश्वर: कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धर: |

तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्रुवा नीतिर्मतिर्मम || 78||

अर्थ : जहाँ योग के स्वमी श्रीकृष्ण और महान धनुर्धर अर्जुन हैं, वहाँ हमेशा अपार संपत्ति, सफलता, समृद्धि और धर्म होता है। यही मेरा मानना है।


 
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