पाँच साल के बच्चों के लिए दयालुता पर 5 छोटी कहानियाँ (5 Short Stories on Kindness for 5 Year Olds in Hindi)
- myNachiketa
 - 4 days ago
 - 5 min read
 

दयालुता सबसे सुंदर चीज़ों में से एक है, जिसे हम दूसरों के साथ बाँट सकते हैं!
दयालुता एक ऐसा ख़ज़ाना है जिसे हर कोई बाँट सकता है चाहे वो छोटा ही क्यों न हो। यह उतनी ही सरल हो सकती है जितनी अपने खिलौने किसी के साथ बाँटना, ज़रूरतमंद की मदद करना, या किसी दोस्त को मुस्कुराना।
छोटी कहानियाँ मतलब - छोटी-छोटी बातें जो हमें बड़ी सीख देती हैं, वो भी मज़ेदार तरीके से! तो चलिए, इन प्यारी कहानियों को पढ़ते हैं और जानते हैं कि कैसे हमारे छोटे-छोटे अच्छे काम इस दुनिया को और भी खुशहाल बना सकते हैं।
myNachiketa खुशी से प्रस्तुत करता है पाँच साल के बच्चों के लिए दयालुता पर 5 छोटी कहानियाँ (5 Short Stories on Kindness for 5 Year Olds in Hindi). इन कहानियों में दिखाया गया है कि दूसरों की मदद करना, जानवरों की देखभाल करना, और जो हमारे पास है उसे बाँटना हमारे दिल को सच्ची खुशी से भर देता है।
कहानी 1: दयालु छोटी गिलहरी

एक हरे-भरे जंगल में एक छोटी गिलहरी रहती थी, जिसका नाम था सैमी। जब सर्दियाँ आने लगीं, तो सैमी जल्दी-जल्दी अखरोट (एकॉर्न) इकट्ठा करने लगी, लेकिन उसे लगा कि उसके पास अभी भी पर्याप्त नहीं हैं। एक दिन, जब वह खाना ढूँढ रही थी, तो उसने देखा कि एक छोटी चिड़िया अपने घोंसले के लिए टहनियाँ इकट्ठा करने में परेशान हो रही है। सैमी ने सोचा, “मुझे उसकी मदद करनी चाहिए, भले ही मैं व्यस्त हूँ।” अपने बारे में सोचने के बजाय, सैमी ने तय किया कि वह अपने कुछ अखरोट चिड़िया को दे देगी। उसने कहा, “ये लो, इन्हें ले लो और थोड़ा आराम कर लो।”
“धन्यवाद, सैमी!” चिड़िया ने खुशी से चहकते हुए कहा। सैमी की मदद से चिड़िया ने समय पर एक सुंदर घोंसला बना लिया। जब ठंड बढ़ी, तो चिड़िया ने सैमी को अपने गर्म घोंसले में बुला लिया, ताकि वह अकेली महसूस न करे।
उस दिन सैमी ने सीखा कि कुछ बाँटने से खुशी मिलती है और दयालुता अनजान लोगों को भी दोस्त बना सकती है।
कहानी 2: रीता की नई दोस्त

एक खुशहाल से मोहल्ले में एक छोटी लड़की रहती थी, जिसका नाम था रीता। वह अभी-अभी नए घर में रहने आई थी। सब कुछ उसे नया और अजनबी लग रहा था, यहाँ तक कि डोरबेल की आवाज़ भी! स्कूल के पहले दिन रीता बहुत अकेली महसूस कर रही थी। खेल के मैदान में बच्चे हँसते-खेलते घूम रहे थे, लेकिन रीता किसी को नहीं जानती थी। वह चुपचाप एक बेंच पर बैठ गई और सबको देखती रही, मन ही मन सोचती - काश कोई मुझसे “हेलो” कहे। तभी उसने देखा कि पास में एक लड़का अकेला बैठा है और बहुत उदास दिख रहा है। रीता ने हिम्मत जुटाई और उसके पास जाकर कहा, “हेलो! मैं रीता हूँ। क्या तुम मेरे साथ खेलोगे?” लड़के ने चौंककर ऊपर देखा और मुस्कुराया। “मैं अरुण हूँ,” उसने खुशी से कहा, “हाँ, चलो खेलते हैं!” दोनों खेलने लगे और थोड़ी ही देर में अच्छे दोस्त बन गए।
रीता की इस दयालुता से सबको यह सीख मिली कि थोड़ी सी अच्छाई और प्यार से अकेलापन भी खुशी में बदल सकता है। कौन जानता था कि एक छोटी-सी “हेलो” से नई दोस्ती की शुरुआत हो सकती है!
कहानी 3: खोया हुआ पप्पी

एक धूप भरी दोपहर, एक खुशमिज़ाज लड़का तरुण स्कूल से घर जा रहा था। वह अपना बैग झुलाते हुए गुनगुना रहा था। अचानक, उसे झाड़ियों के पीछे से हल्की सिसकियाँ सुनाई दीं। जिज्ञासा से उसने झाँककर देखा, वहाँ एक छोटा-सा भूरा पिल्ला (पप्पी) बैठा था, जो काँप रहा था और बहुत डरा हुआ लग रहा था। उसकी आँखों में डर था और पूँछ पैरों के बीच छिपी हुई थी। तरुण ने पिल्ले को नज़रअंदाज़ नहीं किया। उसने उसे धीरे से उठाया और घर ले आया। “चिंता मत करो छोटे, मैं तुम्हें तुम्हारे मालिक से मिलाऊँगा,” तरुण ने सोचा। उसने पिल्ले को खाना और पानी दिया।
अगले दिन तरुण और उसके माता-पिता ने पिल्ले के रंगीन पोस्टर बनाए। वे पूरे मोहल्ले में पेड़ों और नोटिस बोर्डों पर उन्हें लगाने लगे। जल्द ही दूसरे बच्चे भी उनकी मदद करने लगे। पूरा मोहल्ला उस पिल्ले के मालिक को ढूँढने में जुट गया। शाम तक, एक औरत दौड़ती हुई तरुण के घर आई। “यह मेरा पिल्ला है!” उसने खुशी के आँसुओं के साथ कहा। पिल्ला भौंकते हुए सीधा उसकी गोद में कूद गया। सब मुस्कुराने लगे और तरुण का दिल खुशी से भर गया।
उस दिन तरुण ने सीखा कि ज़रूरतमंद की मदद करने से दिल को सच्ची खुशी मिलती है और दयालुता हम सबको जोड़ देती है।
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कहानी 4: दयालुता का एक दिन

एक छोटे, खुशहाल शहर में एक प्यारी और समझदार लड़की रहती थी, जिसका नाम था लता। एक सुबह लता उठी और मुस्कुराते हुए बोली, “आज मैं दयालुता का दिन बनाऊँगी! आज मैं जितने अच्छे काम कर सकूँगी, सब करूँगी!” वह बाहर निकली और हर किसी से मुस्कुराकर बोली, “गुड मॉर्निंग, चड्ढा आंटी!” फिर उसने देखा कि एक बुज़ुर्ग अंकल भारी थैले उठाने में परेशान हो रहे हैं। लता तुरंत दौड़ी और बोली, “मैं आपकी मदद कर देती हूँ?” उसने उनके थैले घर तक पहुँचाने में मदद की। अंकल ने मुस्कुराकर कहा, “धन्यवाद, बेटा!” दोपहर में उसने अपनी दोस्त मिया को उदास देखा, क्योंकि उसका खिलौना टूट गया था। लता ने बिना सोचे अपनी सबसे प्यारी गुड़िया मिया को दे दी ताकि वह फिर से खेल सके। पूरे दिन लता की दयालुता से हर किसी के चेहरे पर मुस्कान आ गई। लोग भी एक-दूसरे के लिए अच्छे काम करने लगे जैसे, उसके एक दोस्त ने लता की होमवर्क में मदद की!
लता ने सीखा कि दयालुता तालाब की लहरों जैसी होती है - जब हम अच्छाई फैलाते हैं, तो वो आगे बढ़ती जाती है और सबको खुश कर देती है। उस दिन पूरे शहर में खुशी की लहर फैल गई!
कहानी 5: बलराम और बड़ा जन्मदिन

बलराम बहुत उत्साह से अपने जन्मदिन की तैयारी कर रहा था। उसका घर रंग-बिरंगे गुब्बारों, स्वादिष्ट मिठाइयों और हँसी-खुशी से भरा हुआ था। जब वह अपने दोस्तों को निमंत्रण देने बाहर गया, तो उसने देखा कि मैदान के पास एक नया लड़का अकेला बैठा है। वह अभी-अभी इस शहर में आया था और किसी को नहीं जानता था। बलराम को याद आया कि जब वह नया-नया स्कूल में आया था, तब उसे भी कैसा अकेलापन महसूस हुआ था। उसने सोचा, “अगर मैं इसे भी बुलाऊँ, तो इसे भी अच्छा लगेगा।” वह मुस्कुराते हुए उस लड़के के पास गया और बोला, “हेलो! आज मेरा जन्मदिन है। क्या तुम मेरे साथ पार्टी में आओगे? चलो, साथ मिलकर मनाते हैं!” लड़के की आँखें खुशी से चमक उठीं। पार्टी में सबने मिलकर खेल खेले, हँसे, नाचे और खूब मज़ा किया। नया लड़का सबका दोस्त बन गया, और बलराम ने महसूस किया कि दयालुता अनजान लोगों को भी अपना बना सकती है और किसी भी उत्सव को और खास बना देती है। उस दिन बलराम ने सीखा कि जब हम सबको अपने साथ शामिल करते हैं, तो खुशी दोगुनी हो जाती है। दयालुता और अपनापन किसी के दिल को खुशियों से भर सकते हैं।
रात को बलराम मुस्कुराते हुए सो गया, यह सोचकर कि उसने किसी को खास और अपनापन महसूस करवाया।
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