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गीता जयंती पर निबंध

myNachiketa

Updated: Dec 12, 2024


  Gita Jayanti

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।


भगवद् गीता (अध्य्याय 18, श्लोक 65) अपना मन भगवान पर लगाओ, उनकी पूजा करो और उन्हें प्रणाम करो। भगवान से जुड़कर और उन पर विश्वास रखकर हम भगवान को प्राप्त कर सकते हैं।


गीता जयंती या गीता महोत्सव एक हिंदू पर्व है, जो उस दिन को समर्पित है जब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सही जीवन जीने और धर्म का पालन करने के महत्व पर अमूल्य ज्ञान दिया। यह ज्ञान भगवद् गीता में दर्ज है, जो हिंदू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथों में से एक है। भगवद् गीता का संकलन महर्षि वेद व्यास ने किया था।


गीता जयंती कब मनाई जाती है

हिंदू पंचांग के अनुसार, गीता जयंती मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह दिन आमतौर पर नवंबर या दिसंबर में पड़ता है।


महाभारत युद्ध के समय कुरुक्षेत्र में अर्जुन अपने ही चचेरे भाइयों, कौरवों के साथ युद्ध करने को लेकर असमंजस में थे। तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सही मार्ग दिखाया और अपना कर्तव्य पालन करने के लिए प्रेरित किया।


गीता जयंती का उत्सव

इस दिन पूरे भारत से लोग कुरुक्षेत्र में एकत्र होते हैं। लोग पवित्र सरोवरों - सन्निहित सरोवर और ब्रह्म सरोवर में स्नान करते हैं। लोग भजन गाते हैं और भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं। यह पर्व दो सप्ताह तक चलता है जिसमें श्लोक पाठ, नृत्य प्रदर्शन, कथा वाचन, भजन और नाटक शामिल है। इस दिन कई सँस्थाएँ भगवद् गीता की पुस्तकें लोगों में वितरित करती हैं। इस दिन वातावरण दिव्य और आध्यात्मिक हो जाता है।


कई स्थानों पर गीता का ज्ञान लोगों तक पहुँचाने के लिए भाषण और चर्चाओं का आयोजन किया जाता है। ये कार्यक्रम लोगों को गीता के ज्ञान को रोचक और सरल तरीके से समझने में मदद करते हैं।


गीता जयंती का महत्व

गीता जयंती हमें भगवद् गीता के गहरे ज्ञान से जोड़ती है। यह हमें महर्षि वेद व्यास के प्रति कृतज्ञ होने की याद दिलाती है, जिन्होंने भगवद् गीता के ज्ञान को सबके लिए सुलभ बनाया।

भगवद् गीता में 700 श्लोक हैं, जो धर्म पालन, निःस्वार्थ और निष्काम कर्म तथा भक्ति के के महत्व को समझाते हैं।


गीता में भगवान कृष्ण ने सिखाया है कि हमें बिना फल की इच्छा किए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए। इसे निष्काम कर्म कहते हैं। हमें हमेशा धर्म का रास्ता अपनाना चाहिए यानी हमेशा सही काम करना चाहिए। हमें सभी काम भगवान को समर्पित करके करना चाहिए इसे भक्ति का मार्ग कहते हैं। श्रीकृष्ण भगवद् गीता में समझाते हैं कि यह सभी रास्ते हमें भगवान तक पहुँचने और जीवन को अधिक उपयोगी बनाने में मदद करते हैं।


भगवद् गीता हमें सिखाती है कि अपने अंदर की अच्छाई को पहचाने और भगवान से जुड़ें। भगवद् गीता हमें अपने अहंकार और गलत इच्छाओं से मुक्त होने और अपने अंदर के सच तक पहुँचने में मदद करती है।


इसलिए, भगवद् गीता जयंती मनाने का मुख्य उद्देश्य गीता के ज्ञान को समझना और उन्हें अपने जीवन में अपनाना है।

 

 
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