बुद्ध पूर्णिमा पर भाषण (Speech on Buddha Purnima in Hindi)
- myNachiketa
- Apr 30
- 3 min read
Updated: May 5

आत्मदीपो भव। अपना दीपक स्वयं बनो।
सुप्रभात आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों,
आज मैं आपके सामने एक विशेष त्योहार बुद्ध पूर्णिमा पर अपने विचार प्रस्तुत करने जा रही हूँ। यह त्योहार हमें उस ज्ञान के प्रकाश की याद दिलाता है जो गौतम बुद्ध जैसे महान गुरु के रूप में इस दुनिया में आया। गौतम बुद्ध ने जीवन की सच्चाई को गहरे प्रश्न पूछकर और झूठ को त्यागकर जाना।
बुद्ध पूर्णिमा हिंदू पंचांग के वैशाख माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो हर साल आमतौर पर अप्रैल या मई में आती है। यह त्योहार गौतम बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं की याद दिलाती है — उनका जन्म, उन्हें मिला ज्ञान, और उनकी मुक्ति। इसलिए यह दिन शांति, प्रकाश और ज्ञान का सूचक है।
गौतम बुद्ध का जन्म राजकुमार सिद्धार्थ के रूप में हुआ था। वह एक सुंदर महल में रहते थे और उनके पास वह सब कुछ था जो एक राजकुमार चाह सकता है। लेकिन एक दिन जब वह महल से बाहर निकले, तो उन्होंने कुछ ऐसा देखा जिसने उनकी ज़िंदगी को बदल दिया। सिद्धार्थ ने लोगों को दुख में देखा, और यह देखकर उनके मन में गहरे प्रश्न उठे — लोग दुखी क्यों होते हैं? क्या इस दुख का कोई अंत हो सकता है?
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इन सवालों के जवाब खोजने के लिए सिद्धार्थ ने अपना राजसी जीवन छोड़ दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े। वर्षों तक बोधि वृक्ष के नीचे गहन ध्यान करने के बाद, उन्हें अपने सभी सवालों के जवाब अपने अंदर मिले। वह बुद्ध बन गए — जिसका अर्थ है “ज्ञानी।” इसके बाद उन्होंने अपना ज्ञान दूसरों के साथ बाँटा ताकि लोग दुखों से मुक्त होकर शांतिपूर्ण जीवन जी सकें।

बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ नामक स्थान पर दिया। वहाँ उन्होंने जीवन से जुड़ी चार सरल लेकिन गहरी सच्चाइयाँ बताईं:
कभी-कभी जीवन कठिन होता है और समस्याओं से भरा होता है।
अधिकतर समय हम इसलिए परेशान होते हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि सब कुछ हमारी मर्ज़ी से हो।
लेकिन अच्छी बात यह है — यह दुख और उदासी खत्म हो सकते हैं।
और एक ऐसा रास्ता है जिससे हम सुख और शांति से जी सकते हैं।
इस रास्ते को अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। यह हमें सच्चे विचार रखने, सही कार्य करने, सत्य वचन बोलने और ध्यानपूर्ण जीवन जीने की शिक्षा देता है। बुद्ध का मानना था कि शांति और खुशी हमारे भीतर ही है, और ध्यान एक माध्यम है इस शांति को महसूस करने का।
बुद्ध की एक कहानी मुझे बहुत पसंद है। एक बार एक आदमी बहुत गुस्से में उनके पास आया और चिल्लाने लगा। लेकिन बुद्ध शांत रहे। उन्होंने उस व्यक्ति से पूछा, “अगर कोई आपको एक उपहार दे और आप उसे स्वीकार न करें, तो वह उपहार किसका हुआ?” उस व्यक्ति ने कहा, “जिसने वह दिया।” बुद्ध मुस्कराए और बोले, “उसी तरह, मैं तुम्हारा गुस्सा स्वीकार नहीं करता।” यह सुनकर वह आदमी शांत हो गया। यह कहानी हमें सिखाती है कि हमें क्रोध के साथ प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए — हम शांत और दयालु बने रह सकते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा कई देशों में मनाई जाती है और यह दिन संयुक्त राष्ट्र द्वारा 'यू एन डे ऑफ़ वेसाक' के रूप में जाना जाता है। स्कूलों में यह त्योहार विशेष उमंग और उत्साह से मनाया जाता है , बच्चे नाटकों, कहानियों और ध्यान जैसी गतिविधियों में भाग लेते हैं।
लोग स्तूपों और मठों में जाते हैं और बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं । यह दिन खुद को जानने और लोगों को करुणा और प्रेम का संदेश देने का दिन है।
बच्चे, महात्मा बुद्ध के जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं — दूसरों के प्रति दयालु बनना, कठिन परिस्थितियों में शांत रहना और यह विश्वास रखना कि जिन उत्तरों की हमें खोज है, उनके जवाब हमारे भीतर ही हैं — हमें बस उन्हें पाना है। हर दिन कुछ मिनट का ध्यान भी हमें शांत और प्रसन्न बना सकता है।
तो मेरे प्यारे मित्रों, इस बुद्ध पूर्णिमा पर हम गौतम बुद्ध की सीखों को अपनाएँ और ज्ञान, दया और शांती का संदेश देते हुए, पूर्णिमा के चाँद की तरह चमकें। इस आशा के साथ मैं अपने शब्दों को विराम देता हूँ/देती हूँ।
धन्यवाद, और आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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