त्योहार हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, वे हमें हमारे मूल्यों की याद दिलाते हैं और हमारे जीवन को खुशियों से भर देते हैं। ऐसा ही एक त्योहार है दीवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, जो हमारे देश में एक बड़े स्तर पर मनाया जाता है। यह प्रकाश का त्योहार है, जिसे भारत के साथ-साथ विश्वभर में बड़ी उत्साह, खुशी और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह कार्तिक महीने की अमावस्या की रात को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर के बीच पड़ता है। यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
दीवाली का पौराणिक और धार्मिक महत्व
प्रभु श्रीराम को अपने राज्य अयोध्या से 14 वर्षों के लिए वन जाने का आदेश दिया गया था। अपने पिता के वचन को निभाने के लिए, श्रीराम ने 14 वर्षों तक वन में रहे। इस वनवास में उनकी पत्नी, देवी सीता और उनके छोटे भाई, लक्ष्मण ने उनका साथ दिया। इस दौरान, रामजी ने राक्षसराज रावण को हराया, जिसने देवी सीता का अपहरण किया था। जब श्री राम, देवी सीता और लक्ष्मण 14 वर्षों के बाद अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासी बहुत खुश हुए। उनकी वापसी और रावण पर श्रीराम की विजय का उत्सव मनाने के लिए, अयोध्या के लोगों ने पूरे नगर में दीये जलाए और दीवाली के त्योहार की शुरुआत हुई।
दीवाली भगवान कृष्ण की नरकासुर पर विजय के सम्मान में भी मनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नरकासुर एक अहंकारी राक्षस था जो इंसानों और देवताओं के लिए एक खतरा हो गया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने उस राक्षस को पराजित किया और संसार में सुख और शांति वापिस लौटी।
दीवाली माता लक्ष्मी की पूजा का भी पर्व है, जो धन और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। अच्छाई की बुराई पर जीत, सुख-समृद्धि लाती है, इसलिए दीवाली पर माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस शुभ दिन, स्वच्छ और जगमगाते घरों पर लक्ष्मीजी की कृपा होती है और लोगों के जीवन में खुशहाली आती है।
दीवाली की तैयारियाँ
दीवाली प्रेम, खुशी, मूल्यों और परंपराओं का त्योहार है। यह त्योहार तीन दिनों तक मनाया जाता है। पहले दिन, जिसे धनतेरस कहा जाता है, भगवान कुबेर, माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी धन के देवता और देवी हैं, जबकि भगवान धन्वंतरि हमें अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। इस दिन लोग पारंपरिक रूप से सोने, चांदी या घरेलू सामान जैसी नई चीजें खरीदते हैं।
दूसरा दिन, नरक चतुर्दशी या छोटी दीवाली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को युद्ध में हराया और उसे उसके बुरे कामों की सज़ा दी। हर साल इस दिन, लोग अपने घरों को रंगोली से सजाते और दीयों से रोशन करते हैं।
तीसरे दिन, दीवाली पर, घरों और गलियों को तेल के दीयों, मोमबत्तियों और रंग-बिरंगी रंगोलियों से सजाया जाता है। सभी लोग परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इस त्योहार को मनाते हैं और पटाखे और आतिशबाजियों का आनंद लेते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश से समृद्धि और सौभाग्य के लिए प्रार्थना की जाती है। दोस्तों और परिवारों में मिठाइयाँ बाँटी जाती है। बच्चे इस दिन बहुत मज़ा करते हैं और स्वादिष्ट पकवान खातें हैं।
दीवाली का सांस्कृतिक महत्व
यह परिवारों और दोस्तों के मिलने, एक दुसरे को उपहार और मिठाइयाँ देने और एकता की भावना को मनाने का समय है। बाज़ार, नए कपड़े, मिठाइयाँ और उपहार खरीदने वाले लोगों से भरा रहता है, घरों को त्योहार के लिए साफ़ किया जाता है और रंगीन लाइटों से सजाया जाता है। यह नई आशा और सकारात्मकता का त्योहार है। लोगों के लिए, दीवाली एक नए आरंभ का अवसर और आने वाले वर्ष के लिए नए संकल्प लेने का समय है।
दीवाली मानाने के साथ ही हमें अपने पर्यावरणन का भी ध्यान रखना चाहिए। पटाखे वायु और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाते हैं, जो मानव और अन्य जीवों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं। हाल के वर्षों में, दीवाली मनाने के तरीकों के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। अब लोग पटाखों का कम उपयोग करते हैं, तेल के दीये जलाते हैं और पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का चुनाव करते हैं।
दिवाली की सीख
दीवाली सिर्फ एक त्योहार नहीं है; यह अंधकार पर प्रकाश की, और बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह लोगों को एक साथ लाता है और हमें भगवान राम की शिक्षाओं जैसे निष्काम कर्म और सत्य से प्रेम को जीवन में अपनानने की सीख देता है। दीवाली हमें सिखाती है कि चाहे रात कितनी भी अंधेरी क्यों न हो, रोशनी की एक किरण उसे मिटने के लिए पर्याप्त होती है।
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