गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस का पांचवा कांड, सुंदरकांड कहलाता है। सुंदरकांड में कुल 58 चौपाई है।सुंदरकांड की चौपाई में हनुमानजी की वीरता और श्रारीम के प्रति उनकी भक्ति को दर्शाया गया है। सुंदरकांड विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें हनुमान जी की लंका यात्रा, सीता जी की खोज, और रावण के साथ उनकी मुठभेड़ का वर्णन है।
myNachiketa प्रस्तुत करता है बच्चों के लिए सुंदरकांड की 8 चौपाई, सरल अर्थ और प्रभावशाली संदेश के साथ जो हनुमानजी की भगवान राम के लिए निःस्वार्थ प्रेम की एक सुंदर प्रस्तुति है। यह चौपाइयाँ हमें हनुमान जी की तरह अपना जीवन अपने भगवान के लिए समर्पित करने की प्रेरणा देती हैं।
1. चौपाई
प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिंधु अनल सितलाई॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में लंका की द्वारपालिका हनुमानजी से कहती है कि आप अयोध्या के राजा श्रीराम को हृदय में रखकर लंका में प्रवेश कर अपने सार काम पूरे कीजिए। जो श्रीराम का ध्यान करते हैं उनके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्र बन जाता है, समुद्र की गहराई समाप्त हो जाती है और अग्नि में शीतलता आ जाती है॥
संदेश
जब हम अपने सभी काम भगवान को याद रख कर करते हैं तो उसमें सफ़लता पाते हैं।
2. चौपाई
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में हनुमान जी श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करते हैं जिसे सुनते ही सीताजी का दुख दूर हो जाता है । सीताजी मन लगाकर श्रीराम का गुणगान सुनती हैं। हनुमानजी शरू से लेकर अंत तक सारी कथा कह सुनाते हैं।
संदेश
हमें अपने शिक्षकों और माता-पिता से महान लोगों की कथा सुननी चाहिए ताकि हमारा ज्ञान बढ़े और हमें जीवन में अच्छे काम करने की प्रेरणा मिले।
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3. चौपाई
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में हनुमान जी रावण से श्रीराम का गुणगान करते हुए कहते हैं कि वो अच्छे लोगों की रक्षा के लिए शरीर लेते हैं और तुम जैसे अज्ञानियों को शिक्षा देते हैं। जिन्होंने शिवजी के कठोर धनुष को तोड़ डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का घमंड भी चूर कर दिया।
संदेश
भगवान हमेशा सच्चे और अच्छे लोगों का साथ देते हैं और बुरे काम करने वालो को सजा देते हैं। इसलिए हमें हमेशा सच के रास्ते पर चलना चाहिए।
4. चौपाई
राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में कहा गया है कि जो श्रीराम से दूर हो जाता है (जो बुराई की तरफ चला जाता है) उसका धन और सम्मान चला जाता है और उसे जो भी मिलता है उसका कोई मोल नहीं होता। जैसे जिन नदियों का कोई स्रोत नहीं होता ( जिन्हें केवल बरसात ही आसरा है) वे वर्षा बीत जाने पर फिर तुरंत ही सूख जाती हैं।
संदेश
अगर हम भगवान में विश्वास बनाए रखेंगे तो हमारी विशेषताएँ कभी खत्म नहीं होंगी और हमें हर काम में सफ़लता मिलेगी।
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5. चौपाई
ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥
उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में कहा गया है कि जिन्होंने अग्नि को बनाया, हनुमानजी उन्हीं के दूत हैं। इसी कारण वह अग्नि से नहीं जले। हनुमानजी ने उलट-पलटकर सारी लंका जला दी। फिर वह समुद्र में कूद पड़े।
संदेश
जो भगवान पर विश्वास करते हैं, भगवान उनकी हमेशा रक्षा करते हैं।
6. चौपाई
जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया॥
ताहि सदा सुभ कुसल निरंतर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में जामवंत कहते हैं कि - हे श्रीराम! जिस पर आप दया करते हैं, उसका हमेशा कल्याण होता है और वह हमेशा खुश रहता है। देवता, मनुष्य और मुनि सभी उस पर प्रसन्न रहते हैं।
संदेश
जिसपर भगवान का आशीर्वाद रहता है उससे सभी खुश रहते हैं। इसलिए हमें हमेशा अच्छे काम करने चाहिए ताकि भगवान हमें आशीर्वाद दें।
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7. चौपाई
उमा राम सुभाउ जेहिं जाना। ताहि भजनु तजि भाव न आना॥
यह संबाद जासु उर आवा। रघुपति चरन भगति सोइ पावा॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में शिव जी माता पार्वती से कहते हैं कि जिसने श्रीराम को जान लिया, उसे उनका भजन सबसे प्रिय हो जाता है। जो भक्त और भगवान के संबंध को समझ जाता है उसे भगवान की भक्ति मिल जाती है।
संदेश
जो सच्चे मन से भगवान की भक्ति करता है भगवान उसे जल्दी ही मिल जाते हैं।
8. चौपाई
निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा। तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में श्रीराम सुग्रीव से कहते हैं कि जिसका मन साफ़ होता है वही मुझे जान पाता है। मुझे कपट और छल करने वाले पसंद नहीं आते। यदि रावण ने विभीषण को हमारे राज़ जानने के लिए भेजा है, तब भी हमें उससे कोई डर या नुकसान नहीं है।
संदेश
अगर हम भगवान को पाना चाहते हैं तो हमें अपने मन से सभी तरह की बुरी भावनाओं को हटा देना चाहिए। हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए, दूसरों पर गुस्सा नहीं करना चाहिए और किसी का भी बुरा नहीं करना चाहिए।
9. चौपाई
जदपि कही कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥
बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में हनुमानजी ने रावण से भक्ति और ज्ञान से भरी हुई बहुत ही हित की बात कही, तो भी वह अभिमानी रावण हँसकर बोला कि अब यह वानर हमें ज्ञान देगा ।
संदेश
ज्ञान चाहें जिससे भी मिले वह अनमोल होता है। इसलिए हमें किसी से भी ज्ञान लेने में संकोच नहीं करना चाहिए।
10. चौपाई
कहेहु तात अस मोर प्रनामा। सब प्रकार प्रभु पूरनकामा॥
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में सीताजी ने हनुमानजी से कहा कि श्रीराम को मेरा प्रणाम कहना उन तक मेरा निवेदन पहुँचाते हुए कहना कि हे प्रभु! आप सब प्रकार से पूर्ण हैं, आपको किसी चीज़ की इच्छा नहीं है, तो भी दुखी लोगों पर दया करना आपका स्वभाव है। इसलिए कृपया मेरे दुख भी दूर कीजिए।
संदेश
हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि वो हमारी परेशनियाँ दूर करें और हमें सही काम करने की सीख दें।
11. चौपाई
सोइ बिजई बिनई गुन सागर। तासु सुजसु त्रैलोक उजागर॥
प्रभु कीं कृपा भयउ सबु काजू। जन्म हमार सुफल भा आजू॥
अर्थ
सुन्दरकांड की इस चौपाई में हनुमानजी के लंका से विजयी हो कर लौटने पर जामवंत श्रीराम से कहते हैं कि जिस पर आपका आशीर्वाद होता है वही विजयी है, विनयी है और वही गुणों का समुद्र बन जाता है। तीनों लोकों में उसका गुणगान होता है। प्रभु की कृपा से सब कार्य हुआ। आज हमारा जन्म सफल हो गया।
संदेश
भगवान जिसको आशीर्वाद देते हैं उसके सारे काम बिना किसी मुश्किल के पूरे हो जाते हैं। इसलिए हमें भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि वो हमें सफल होने का आशीर्वाद दें।
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